सत्य और परोपकार पर कहानियाँ
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महर्षि वेदव्यास ने 18 पुराण लिखे. एक व्यक्ति जो अनपढ़ था. उसने महर्षि से पूछा – महामन, मैं तो अनपढ़ ठहरा. अमिन इन ग्रंथों को पढ़ नहीं सकता. मुझ जैसे लोगों को क्या करना चाहिए. महर्षि ने कहा – परोपकार सबसे बड़ा पुण्य और परपीड़ा यानि दूसरों को कष्ट देना सबसे बड़ा पाप है. आइये परोपकार से सम्बंधित इस कहानी को पढ़ें और आत्मसात करें.
समुद्र के किनारे एक लड़का अपनी माँ के साथ रहता था. उसके पिता नाविक थे. कुछ दिनों पहले उसके पिता जहाज लेकर समुद्री-यात्रा पर गए थे. बहुत दिन बीत गए पर वे लौट कर नहीं आए. लोगों ने समझा कि समुद्री तूफान में जहाज डूबने से उनकी मृत्यु हो गई होगी.
एक दिन समुद्र में तूफान आया, लोग तट पर खड़े थे. वह लड़का भी अपनी माँ के साथ वहीं खड़ा था. उन्होंने देखा कि एक जहाज तूफान में फँस गया है. जहाज थोड़ी देर में डूबने ही वाला था. जहाज पर बैठे लोग व्याकुल थे. यदि तट से कोई नाव जहाज तक चली जाती तो उनके प्राण बच सकते थे.
तट पर नाव थी; लेकिन कोई उसे जहाज तक ले जाने का साहस न कर सका. उस लड़के ने अपनी माँ से कहा – “माँ ! मैं नाव लेकर जाऊंगा.” पहले तो माँ के मन में ममता उमड़ी, फिर उसने सोचा कि एक के त्याग से इतने लोगों के प्राण बचा लेना अच्छा है. उसने अपने पुत्र को जाने की आज्ञा दे दी
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