सत्यवादी पर निबंध हिंदी में
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Essay on satyawadi In Hindi
जीवन को संस्कृति के अनुसार ढालने के लिए मानव समुदाय को कुछ मूल्यों को अपनाना होता हैं. जिनमें सत्य, ईमानदारी जैसे गुण मूल में होते हैं. हमेशा सत्य वचन कहने वाले को सत्यवादी कहा जाता हैं. भारत में राजा हरिश्चन्द्र को हर कोई जानता हैं जो अपनी सत्यवादिता के कारण अमर हो गया.
जीवन की प्रत्येक परस्थिति चाहे वह हमारे अनुकूल हो या प्रतिकूल उसमें सत्य का साथ न छोड़ना ही सत्यता या सत्यवादिता कहलाता हैं. कबीरदास ने सत्य के महत्व को स्वीकार करते हुए एक उक्ति कही थी सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप.
हमें सत्यवादी को समझने से पूर्व सत्यता के अर्थ स्वरूप और प्रभाव को जानना होगा. सत्यता का अर्थ होता है सत्य का स्वरूप. उसे धारण करने वाली सत्यवादी कहलाता हैं. सत्य शब्द का निर्माण संस्कृत की सत् धातु एवं ल्यप प्रत्यय लगने से बनता हैं. जिसका संस्कृत में आशय अस्ति से होता हैं.
अस्ति एक क्रिया है जिसका आशय है होता हैं. जिसे सरल शब्दों में वर्तमान, अतीत और भविष्य काल में एक रूप बने रहने वाले गुण, वस्तु या भाव को सत्य कहा जाता हैं. जो कल सत्य था वह आज भी हैं और कल भी रहेगा. सत्य का बोध एवं इसकी राह पर चलना उतना आसान नहीं हैं. सत्य के स्वरूप को पहचाने के लिए मानव को असत्य को जानना होगा जिसके बाद वह मूल सत्य की पहचान कर सकता हैं.
भारत की संस्कृति में सत्यवादिता को महान गुण माना हैं. दशरथ अपने सत्य वादन एवं वचनों के पक्के हुआ करते थे. कैकेयी को दिए वचन के अनुसार अपने प्रिय पुत्र को भी सत्य की खातिर वनवास भेजा. इनसे पूर्व राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य की राह को अपने जीवन को खफा दिया था.
इन्होने सत्य का पालन करते हुए डोम के हाथों अपनी पत्नी और बेटे को भी ब्राह्मण के हाथों बेच दिया. जीवन में घोर यातनाएँ सहने के बाद भी उन्होंने सत्य के मार्ग से स्वयं को जरा भी विचलित नहीं किया.
महाभारत में भी सत्यवादी भीष्म पितामह का प्रसंग मिलता हैं. जिन्होंने अपनी प्रतिज्ञा के पालन के लिए साहस नहीं छोड़ा. आधुनिक युग में गांधी को सत्यवादी कहा गया. इस तरह हम समझ सकते हैं प्राचीनकाल से लेकर आधुनिक काल तक सत्यवादी लोग अमर हुए.
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