सतगुरु की महिमा अनैत, अनंत किया उपगार।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनैत दिखावणहार।।2।।
दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अषट।
पूरा किया बिसाहुण, बहुरि न आव ट।।3।।
बड़े थे परि ऊबरे, गुर की लहरि चमकि।
भेरा देख्या जरजरा, ऊतरि पड़े फरकि।।4।।
चिंता तौ हरि नाँव की, और न चिन्ता दास्।।
जे कछ चितवै राम बिन, सोइ काल की पास।।5i।
Answers
ये कबीर की प्रसिद्ध साखियां (दोहे) हैं जिनका भावार्थ क्रमानुसार इस प्रकार होगा...
सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥
भावार्थ — कबीर कहते हैं कि सतगुरू की महिमा का वर्णन शब्दों में नही किया जा सकता। सतगुरू की महिमा की कोई सीमा नही है। गुरू ने हम पर असीम उपकार किया हुआ है। उन्होंने हमें अज्ञान के अंधेरे से निकालकर ज्ञान का मार्ग दिखाया है। हमारे ज्ञान चक्षु खोल दिये हैं और हमें पर परमात्मा के दर्शन कराये हैं।
दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट ।
पूरा किया बिसाहना, बहुरि न आँवौं हट्ट ।।
भावार्थ — कबीर कहते हैं, कि सद्गुरू ने मुझ शिष्यरूपी दीपक में ज्ञान रूपी तेल भर दिया और उसमें कभी न खत्म होने वाला बाती डाल दी है। गुरू ने मुझे ज्ञान से परिपूर्ण कर दिया है, और मेरा लेन-देन पूरा कर दिया है। इस लेद-देन के पूरा होने के बाद मुझे इस संसार रूपी बाजार में पुनः आने की आवश्यकता नही है।
बूड़ा था पै ऊबरा, गुरु की लहरि चमंकि ।
भेरा देख्या जरजरा, (तब) ऊतरि पड़े फरंकि ।।१९।।
भावार्थ — कबीर कहते हैं कि बीच भबसागर में थे जिसे पार करना कठिन था। अचानक गुरी रूपी लहर दिखाई दी। गुरू रूपी लहर को देखकर कमजोर जहाज को छोड़ दिया और उस लहर के सहारे भवसागर को पार कर लिया। यहाँ पर कहने का तात्पर्य है कि गुरू के बताये मार्ग पर चलकर सद्ज्ञान को पा लिया।
चिंता तौ हरि नाँव की, और न चितवै दास।
जे कछु चितवैं राम बिन, सोइ काल की पास॥
भावार्थ — कबीर कहते हैं कि मैं तो केवल ईश्वर का नाम का ही चिंतन करता हूँ। उसके अलावा मुझे कुछ भी नही सूझता है। ईश्वर का चिंतन मुझे भवसागर से पार लगा देगा। जो लोग ईश्वर का चिंतन न करके किसी और का चिंतन करते हैं वो इस संसार में जन्म-मृत्यु के चक्कर में फँसे रहते हैं, मोह बंधन में उलझे रहते हैं, उनका कभी उद्धार नही हो पाता।
Answer:
sant kabir daas ke dohe