Hindi, asked by deepakmalveey774, 16 days ago

सतगुरु साँचा सूरिवाँ, सबद जु बाह्या एक । लागत ही भैं मिलि गया, पड्या कलेजै छेक ।।७।।

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Answered by srishtirormaratha104
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Answer:

सतगुरु साँचा सूरिवाँ -कबीर  

सतगुरु साँचा सूरिवाँ -कबीर

कविकबीरजन्म1398 (लगभग)जन्म स्थानलहरतारा ताल, काशीमृत्यु1518 (लगभग)मृत्यु स्थानमगहर, उत्तर प्रदेशमुख्य रचनाएँसाखी, सबद और रमैनीइन्हें भी देखेंकवि सूची, साहित्यकार सूची

कबीर की रचनाएँ

कथनी-करणी का अंग -कबीर

चांणक का अंग -कबीर

अवधूता युगन युगन हम योगी -कबीर

कबीर की साखियाँ -कबीर

बहुरि नहिं आवना या देस -कबीर

समरथाई का अंग -कबीर

अंखियां तो झाईं परी -कबीर

कबीर के पद -कबीर

जीवन-मृतक का अंग -कबीर

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार -कबीर

भेष का अंग -कबीर

मधि का अंग -कबीर

उपदेश का अंग -कबीर

करम गति टारै नाहिं टरी -कबीर

भ्रम-बिधोंसवा का अंग -कबीर

पतिव्रता का अंग -कबीर

मोको कहां ढूँढे रे बन्दे -कबीर

चितावणी का अंग -कबीर

बीत गये दिन भजन बिना रे -कबीर

कामी का अंग -कबीर

मन का अंग -कबीर

जर्णा का अंग -कबीर

निरंजन धन तुम्हरो दरबार -कबीर

माया का अंग -कबीर

काहे री नलिनी तू कुमिलानी -कबीर

Answered by bhatiamona
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सतगुरु साँचा सूरिवाँ, सबद जु बाह्या एक । लागत ही भैं मिलि गया, पड्या कलेजै छेक ।।७।।

कबीर दास की दोहे की इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है।

सतगुरु साँचा सूरिवाँ, सबद जु बाह्या एक।

लागत ही भैं मिलि गया, पड्या कलेजै छेक।।

व्याख्या :

कबीरदास कहते हैं कि सतगुरु जी सच्चे वीर पुरुष है। क्योंकि सतगुरु ने जो शब्द रूपी वचन कहे हैं, उनसे मेरे हृदय पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा है। सद्गुरु के ज्ञान भरे वचनों ने मेरे अंतर्मन को अंदर तक झकझोर कर के रख दिया है और मैं आत्मचिंतन में लग गया हूँ। सद्गुरु के कारण मेरे अंदर ज्ञान का उदय हुआ है। उन्होंने मेरे अंदर के अंधकार को अपनी वीरता से मिटा दिया है, इसलिये वे ही सच्चे वीर हैं।

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