Hindi, asked by khushikumariii375, 16 days ago

सतपुड़ा के घने जंगल, नींद में डूबे हुए से, उघते अनमने जंगल। कोनसा अंलकार है ।

Answers

Answered by tejmshah1301
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Explanation:

सतपुड़ा के घने जंगल।

नींद मे डूबे हुए से

ऊंघते अनमने जंगल।

झाड़ ऊंचे और नीचे,

चुप खड़े हैं आंख मीचे,

घास चुप है, कास चुप है

मूक शाल, पलाश चुप है।

बन सके तो धंसो इनमें,

धंस न पाती हवा जिनमें,

सतपुड़ा के घने जंगल

ऊंघते अनमने जंगल।

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चलो इन पर चल सको तो

सड़े पत्ते, गले पत्ते,

हरे पत्ते, जले पत्ते,

वन्य पथ को ढंक रहे-से

पंक-दल में पले पत्ते।

चलो इन पर चल सको तो,

दलो इनको दल सको तो,

ये घिनौने, घने जंगल

नींद में डूबे हुए से

ऊंघते अनमने जंगल।

पैर को पकड़ें अचानक

अटपटी-उलझी लताएं,

डालियों को खींच खाएं,

पैर को पकड़ें अचानक,

प्राण को कस लें कपाएं।

सांप सी काली लताएं

बला की पाली लताएं

लताओं के बने जंगल

नींद में डूबे हुए से

ऊंघते अनमने जंगल।

मकड़ियों के जाल मुंह पर

मकड़ियों के जाल मुंह पर,

और सर के बाल मुंह पर

मच्छरों के दंश वाले,

दाग काले-लाल मुंह पर,

वात-झन्झा वहन करते,

चलो इतना सहन करते,

कष्ट से ये सने जंगल,

नींद मे डूबे हुए से

ऊंघते अनमने जंगल।

अजगरों से भरे जंगल

अजगरों से भरे जंगल

अगम, गति से परे जंगल

सात-सात पहाड़ वाले,

बड़े-छोटे झाड़ वाले,

शेर वाले बाघ वाले,

गरज और दहाड़ वाले,

कम्प से कनकने जंगल,

नींद मे डूबे हुए से

ऊंघते अनमने जंगल।

इन वनों के खूब भीतर,

चार मुर्गे, चार तीतर

पाल कर निश्चिन्त बैठे,

विजनवन के बीच बैठे,

झोंपड़ी पर फूस डाले

गोंड तगड़े और काले।

जब कि होली पास आती

जब कि होली पास आती,

सरसराती घास गाती,

और महुए से लपकती,

मत्त करती बास आती,

गूंज उठते ढोल इनके,

गीत इनके, बोल इनके

सतपुड़ा के घने जंगल

नींद मे डूबे हुए से

उंघते अनमने जंगल।

जागते अंगड़ाइयों में,

खोह-खड्डों खाइयों में,

घास पागल, कास पागल,

शाल और पलाश पागल,

लता पागल, वात पागल,

डाल पागल, पात पागल

मत्त मुर्गे और तीतर,

इन वनों के खूब भीतर।

क्षितिज तक फ़ैला हुआ-सा

क्षितिज तक फ़ैला हुआ-सा,

मृत्यु तक मैला हुआ-सा,

क्षुब्ध, काली लहर वाला

मथित, उत्थित जहर वाला,

मेरु वाला, शेष वाला

शम्भु और सुरेश वाला

एक सागर जानते हो,

उसे कैसा मानते हो?

ठीक वैसे घने जंगल,

नींद मे डूबे हुए से

ऊंघते अनमने जंगल।

धंसो इनमें डर नहीं है,

मौत का यह घर नहीं है,

उतर कर बहते अनेकों,

कल-कथा कहते अनेकों,

नदी, निर्झर और नाले,

इन वनों ने गोद पाले।

लाख पंछी सौ हिरन-दल

लाख पंछी सौ हिरन-दल,

चांद के कितने किरण दल,

झूमते बन-फूल, फलियां,

खिल रहीं अज्ञात कलियां,

हरित दूर्वा, रक्त किसलय,

पूत, पावन, पूर्ण रसमय

सतपुड़ा के घने जंगल,

लताओं के बने जंगल।

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