Hindi, asked by prasannakumar23jpk, 6 months ago

सतर्क भारत व समृद्ध भारत पर निबंध लिखिए​

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Answered by sangeeservi
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Answer:

मैं गन्दगी को दूर करके भारत माता की सेवा करुँगा। मैं शपथ लेता हूँ कि मैं स्वयं स्वच्छता के प्रति सजग रहूँगा और उसके लिये समय दूँगा। हर वर्ष सौ घंटे यानी हर सप्ताह दो घंटे श्रमदान करके स्वच्छता के इस संकल्प को चरितार्थ करुँगा। मैं न गन्दगी करुँगा, न किसी और को करने दूँगा। सबसे पहले मैं स्वयं से, मेरे परिवार से, मेरे मोहल्ले से, मेरे गाँव से और मेरे कार्यस्थल से शुरुआत करुँगा। मैं यह मानता हूँ कि दुनिया के जो भी देश स्वच्छ दिखते हैं उसका कारण यह है कि वहाँ के नागरिक गन्दगी नहीं करते और न ही होने देते हैं। इस विचार के साथ मैं गाँव-गाँव और गली-गली स्वच्छ भारत मिशन का प्रचार करुँगा। मैं आज जो शपथ ले रहा हूँ वह अन्य सौ व्यक्तियों से भी करवाऊँगा, ताकि वे भी मेरी तरह सफाई के लिये सौ घंटे प्रयास करें। मुझे मालूम है कि सफाई की तरफ बढ़ाया गया एक कदम पूरे भारत को स्वच्छ बनाने में मदद करेगा। जय हिन्द।’’

Answered by TheQuantumMan
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Answer:

प्रत्येक उत्तम विचार ऊपर से अवतरित होता है | उसका सम्मान होना चाहिये , बिना इस पर विचार किये कि उसका माद्ध्यम क्या है | और यदि वह विचार स्वच्छता से सम्बंधित हो तो न केवल उसका सम्मान होना चाहिये वरन उस पर पूरी तत्परता से अमल भी होना चाहिये | यह इस लिए नहीं की इसको किसी व्यक्ति विशेष ने कहा है , बल्कि इस लिए की हम एक सभ्य समाज के अंग और एक समृद्ध संस्कृति के उत्तराधिकारी हैं | स्वच्छता सभ्य और सुसंस्कृत होने की प्रथम एवं अनिवार्य शर्त है | भौतिक स्वच्छता वैचारिक , धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नयन की आधार भूमि है | वैसे तो पशु पक्षी भी अपनी भौतिक स्वच्छता के प्रति सजग रहते हैं परन्तु मनुष्य तो इस सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है अतः उसका उत्तरदायित्व मात्र स्वयं एवं घर परिवार तक सिमित नहीं रह सकता , उसको अपनी संवेदनशीलता का दायरा इससे आगे बढ़ कर ग्राम , मोहल्ला , देश और अनंत प्रकृति तक विस्तृत करना होगा | मनुष्य ईश्वर की ओर से इस प्रकृति का संरक्षक है |

दुर्भाग्य से अपने देश में मनुष्य अपनी इस महती भूमिका को विस्मृत कर बैठा है | क्षुद्र स्वार्थों , आलस्य और प्रमाद ने प्रकृति एवं विशेषकर स्वच्छता के प्रति उसकी संवेदनाओं को अत्यंत संकुचित कर दिया है | नहीं तो कैसे वह अपने घरों का कचरा दिन भर अपने ही घरों के सामने की सड़कों पर फेंका करता है ? कैसे वह राह चलते जहां तहां थूका करता है ? यह सड़कें भी वैसे ही हमारी अपनी हैं , जैसा हमारा अपना घर | क्या हम अपने घर में जहां तहां थूकते हैं , या एक कमरे का कचरा निकल कर दूसरे कमरे के सामने डालते हैं ? नहीं न ! फिर अपनी ही सड़कों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार क्यों ? यह सड़कें ही पता देतीं हैं ,कि इनके किनारे रहने वाले जन कितने सभ्य हैं |

हम कैसे यत्र तत्र सर्वत्र सार्वजनिक स्थलों पर अपने प्राकृतिक आवेगों को निस्सृत कर प्रदूषित कर सकते हैं | अंततः यह सड़कें , यह पार्क , यह मैदान , यह खेत , यह खलियान सब हमारी उस पवित्र भूमि के पावन अंग हैं , जिसको हम मातृभूमि कहते हैं और उसको प्यार करते हैं , और उसपर गर्व करते हैं | इसको स्वच्छ रखना , इसका सुंदर श्रृंगार करना ही इसकी पूजा है , आराधना है | हम मात्र उपरोक्त वर्जित कृत न कर के भी इस पूजा के सहभागी हो सकते हैं | और यदि हम कुछ करना चाहें तो करने के लिए अनंत संभावनाएं हैं | परन्तु हमको कम से कम इतना तो करना ही चाहिए , की घर के कचरे को वर्गीकृत कर निस्तारित करें | यह भी कैसी विडंबना है कि जिस कचरे से कुछ अर्थ प्राप्ति की संभावना होती है , उसको तो हम महीनों सहेज कर घर में रखते हैं और शेष कचरे को कुछ घंटे घर में रखना सहन नहीं कर पाते और अत्यंत गैरजिम्मेदारी से हर समय सड़कों पर फेंकते रहते हैं | इस कचरे में बहुत बड़ा अंश ऐसा होता है जो किसी न किसी के लिए उपयोगी हो सकता है , जैसे कागज के छोटे छोटे टुकड़े , नगर और कस्बों में कचरा बीनने वालों के लिए उपयोगी हो सकते हैं , फलों के छिलके और सब्जियों के अंश , पशुओं के लिए उपयोगी हो सकते हैं ,आदि आदि | यदि हम इनको अलग अलग कर एक आध दिन घरों में सहेज सकें ,तो इनका यथोचित माध्यमों में यथापेक्षित निवेश हो सकता है , और अवशिष्ट अतिअल्प वास्तविक कचरे को सफाई कर्मचारी को देदिया जाये अथवा उसके आने के पूर्व सड़क किनारे रख दिया जाये | इससे जहां हमारी सड़कें स्वच्छ रहेंगीं , वहीं नगर और कस्बों के बाहर लगने वाले कचरे के ढेरों में महत्वपूर्ण कमी आएगी | इसके लिए बहुत कुछ नहीं करना होगा , केवल थोड़ा सा अतिरिक्त श्रम , स्वच्छता के प्रति संवेदनशीलता एवं इस हेतु स्व बोध का विस्तार ही पर्याप्त है | इन छोटे छोटे प्रयासों से व्यक्ति , समाज और देश के स्वास्थ में अत्यंत महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है |

यह भी एक बहुत बड़ा सत्य है कि जो जितना अधिक सभ्य समाज है , वह उतना ही अधिक कचरा उत्सर्जित करता है | अतः हम नगर और कस्बों में रहने वाले तथाकथित सभ्य समाज का उत्तरदायित्व है , कि वह कचरा प्रबंधन और निस्तारण के मूलभूत सिद्धांतों को जाने , समझे और उसपर अमल करे | कचरा क्या है ? जो भी वस्तु अपने नियत स्थान से विलग है , वह कचरा है | ऐसी वस्तु पुनः कोई उपयोगी स्वरूप को उपलब्ध हो सके , इसकी व्यवस्था करना ही कचरा प्रबंधन है | जैसे कागज का टुकड़ा यदि मेज पर है तो उपयोगी है और यदि भूमि पर है तो कचरा है | उसको यदि कागज बनाने के कारखाने तक पहुंचने की व्यवस्था की जाये , तो यह कचरा प्रबंधन है | इसका ज्ञान बालावस्था से स्कूलों में पाठ्यक्रमों के माध्यम से और घरों में व्यवहार के द्वारा दिया जाना चाहिए |

राष्ट्र के इस महाभियान में जाति , धर्म , सम्प्रदाय आदि समस्त विभेदों से ऊपर उठ कर प्रत्येक जन और समाज के हर वर्ग का योगदान होना चाहिए | संत महात्माओं को समाज में स्वच्छता के प्रति संवेदनशीलता की अलख जगानी चाहिए | राजनीतिक दलों को परस्पर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के द्वारा जन जन को इस हेतु प्रशिक्षित करना चाहिए | यह राष्ट्र सबका है , यह राष्ट्र सबके लिए है , अतः इसका स्वच्छ स्वरुप सबके द्वारा ही निखरे गा |

स्वच्छ भारत , समृद्ध भारत की ओर एक कदम होगा | जब स्वच्छता १२५ करोड़ भारतियों के व्यक्तिक , सामाजिक और राष्ट्रिय चरित्र में समाविष्ट हो जाएगी , तब भारत स्वच्छ भी होगा और समृद्ध भी होगा |

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