Satatposhniyeh vikas ke mahatv ka वर्णन कीजिए
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चालक विकास
यद्यपि चालक विकास में दृष्टि की अर्थपूर्ण भूमिका है, दृष्टि समस्या से ग्रस्त बच्चे, अन्य शिशुओं की ही तरह लगभग उसी समय और उसी अनुक्रम में चालक विकास की कुछ उपलब्धियों को हसिल करने के प्रति प्रवृत्त होते है।
ये बच्चे न देखने वाले अपने हाथों की ओर देखते हैं, अकेले बैठना शुरू करते हैं, लुढ़ाकना चलते समय पैर उठा – उठाकर चलते हैं, हाथों और घुटनों के बल उठाते हैं तथा सामान्य शिशुओं की ही तरह उसी आयु में अकेले खड़े होते हैं। फिर भी, उनमें स्वयं आरंभ की गयी चालकता हासिल करने उअर चीजों के लिए उन तक पहुँचने में पर्याप्त देरी दिखाते हैं।
उनमें औंधा (पेट के बल) लेटने के अनुभव की कमी होती है, इसलिए वे प्रसारक (पीठ की मांसपेशियों की शक्ति) का विकास करने के योग्य नहीं होते। इससे द्विपर्श्वी कार्यकलापों के लिए हाथों का उपयोग भी निषेध हो जाता है। परंतु बच्चे में मध्य रेखा अभिमुखीकरण (हाथों को शरीर के बीच में लाना) और चित्त (पीठ के बल लेटना) लेटने की स्थिति में हाथ पर दृष्टि डालने में कमी हो जाती है।
पर्यावरण में मौजूद वस्तुओं तक पहुँचने और उनका स्थान निर्धारण करने में दृष्टि समस्या वाले बच्चे में कमी होती है, और यदि यह गुण होता भी हो तो उसका अंदाजा सही नहीं होता और बच्चा अस्त – व्यस्त या भ्रमित रहता है।
बच्चा स्वयं आरंभ की गयी चालकता खोज लेता है और एक स्थिति में दूसरी स्थिति में बदलाव अत्यंत ही चुनौती भरा होता है।
कारण और प्रभाव की संकल्पना में देरी होती है क्योंकि, उनका नियंत्रण अपने पर्यावरण पर नहीं होता और चालकता आरंभ करने, उनमें प्रोत्साहन नहीं होता।