सद्संगति का महत्व पर 200 शब्दों का निबंध लिखिए
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•प्रस्तावना - सत्संगति से ही मनुष्य में गुण-दोष आते हैं।’ मनुष्य का जीवन अपने आस-पास के वातावरण से प्रभावित होता है। मूलरूप से मानव के विचारों और कार्यों को उसके संस्कार व वंश-परम्पराएँ ही दिशा दे सकती हैं। यदि उसे स्वच्छ वातावरण मिलता है तो वह कल्याण के मार्ग पर चलता है और यदि वह दूषित वातावरण में रहता है तो उसके कार्य भी उससे प्रभावित हो जाते हैं।
•सत्संगति का अर्थ - सत्संगति का अर्थ है-‘अच्छी संगति’। वास्तव में ‘सत्संगति’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-‘सत्’ और संगति अर्थात् ‘अच्छी संगति’। ‘अच्छी संगति’ का अर्थ है-ऐसे सत्पुरूषों के साथ निवास जिनके विचार अच्छी दिशा की ओर ले जाएँ।
•कुसंगति से हानि - कुसंगति से लाभ की आशा करना व्यर्थ है। कुसंगति से पुरूष का विनाश निश्चित है। कुसंगति के प्रभाव से मनस्वी पुरूष भी अच्छे कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं। कुसंगति में बंधे रहने के कारण वे चाहकर भी अच्छा कार्य नहीं कर पाते। कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा। जो छात्र कुसंगति में पड़ जाते हैं वे अनेक व्यसन सीख जाते हैं जिनका प्रभाव उनके जीवन पर बहुत बुरा पड़ता है। उनके लिए प्रगति के मार्ग अवरूद्ध हो जाते हैं। उनका मस्तिष्क अच्छे-बुरे का भेद करने में असमर्थ हो जाता है। उनमें अनुशासनहीनता आ जाती है। गलत दृष्टिकोण रखने के कारण ऐसे छात्र पतन के गर्त में गिर जाते हैं। वे देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व भी भूल जाते हैं।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ठीक ही लिखा है-‘कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। किसी युवा पुरूष की संगति बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी जो उसे दिन-पर-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी’
•उपसंहार - सत्संगति का अद्वितीय महत्व है जो सचमुच हमारे जीवन को दिशा प्रदान करती है। सत्संगति एक पारस है जो जीवनरूपी लोहे को कंचन बना देती है। मानव-जीवन की सर्वांगीण उन्नति के लिए सत्संगति आवश्यक है। इसके माध्यम से हम अपने लाभ के साथ-साथ अपने देश के लिए भी एक उत्तरदायी तथा निष्ठावान नागरिक बन सकेंगे।
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