सठ सुधरहिं सतसंगति पाई par kahani
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सत्संगति के प्रभाव से बुरे लोगों के अच्छे बनने और कुसंगति के प्रभाव से अच्छे लोगों के बुरे बन जाने के अनेक उदाहरण हमारे बीच मौजूद है. पूर्व में डाकू रहे महर्षि वाल्मीकि ने सत्संगति में आने के बाद में ही महर्षि की उपाधि प्राप्त की एवं प्रसिद्ध अमर ग्रंथ रामायण की रचना की. इसी प्रकार अंगुलीमाल ने महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने के बाद हत्या, लूटपाट के कार्य को छोड़कर सदाचरण के मार्ग को अपना लिया. जबकि ठीक इसके विपरीत कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा है.
सत्संगति के प्रभाव से बुरे लोगों के अच्छे बनने और कुसंगति के प्रभाव से अच्छे लोगों के बुरे बन जाने के अनेक उदाहरण हमारे बीच मौजूद है. पूर्व में डाकू रहे महर्षि वाल्मीकि ने सत्संगति में आने के बाद में ही महर्षि की उपाधि प्राप्त की एवं प्रसिद्ध अमर ग्रंथ रामायण की रचना की. इसी प्रकार अंगुलीमाल ने महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने के बाद हत्या, लूटपाट के कार्य को छोड़कर सदाचरण के मार्ग को अपना लिया. जबकि ठीक इसके विपरीत कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा है.सत्संगति एक प्राणवायु है, जिसके संसर्ग मात्र से मनुष्य सदाचरण का पालक बन जाता है, दयावान, विनम्र, परोपकारी एवं ज्ञानवान बन जाता है, इसलिए तुलसीदास जी ने लिखा है कि.
सत्संगति के प्रभाव से बुरे लोगों के अच्छे बनने और कुसंगति के प्रभाव से अच्छे लोगों के बुरे बन जाने के अनेक उदाहरण हमारे बीच मौजूद है. पूर्व में डाकू रहे महर्षि वाल्मीकि ने सत्संगति में आने के बाद में ही महर्षि की उपाधि प्राप्त की एवं प्रसिद्ध अमर ग्रंथ रामायण की रचना की. इसी प्रकार अंगुलीमाल ने महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने के बाद हत्या, लूटपाट के कार्य को छोड़कर सदाचरण के मार्ग को अपना लिया. जबकि ठीक इसके विपरीत कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा है.सत्संगति एक प्राणवायु है, जिसके संसर्ग मात्र से मनुष्य सदाचरण का पालक बन जाता है, दयावान, विनम्र, परोपकारी एवं ज्ञानवान बन जाता है, इसलिए तुलसीदास जी ने लिखा है कि.सठ सुधरहि सत्संगति पाई
सत्संगति के प्रभाव से बुरे लोगों के अच्छे बनने और कुसंगति के प्रभाव से अच्छे लोगों के बुरे बन जाने के अनेक उदाहरण हमारे बीच मौजूद है. पूर्व में डाकू रहे महर्षि वाल्मीकि ने सत्संगति में आने के बाद में ही महर्षि की उपाधि प्राप्त की एवं प्रसिद्ध अमर ग्रंथ रामायण की रचना की. इसी प्रकार अंगुलीमाल ने महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने के बाद हत्या, लूटपाट के कार्य को छोड़कर सदाचरण के मार्ग को अपना लिया. जबकि ठीक इसके विपरीत कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा है.सत्संगति एक प्राणवायु है, जिसके संसर्ग मात्र से मनुष्य सदाचरण का पालक बन जाता है, दयावान, विनम्र, परोपकारी एवं ज्ञानवान बन जाता है, इसलिए तुलसीदास जी ने लिखा है कि.सठ सुधरहि सत्संगति पाईपारस परस कुधातु सुहाई
सत्संगति के प्रभाव से बुरे लोगों के अच्छे बनने और कुसंगति के प्रभाव से अच्छे लोगों के बुरे बन जाने के अनेक उदाहरण हमारे बीच मौजूद है. पूर्व में डाकू रहे महर्षि वाल्मीकि ने सत्संगति में आने के बाद में ही महर्षि की उपाधि प्राप्त की एवं प्रसिद्ध अमर ग्रंथ रामायण की रचना की. इसी प्रकार अंगुलीमाल ने महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने के बाद हत्या, लूटपाट के कार्य को छोड़कर सदाचरण के मार्ग को अपना लिया. जबकि ठीक इसके विपरीत कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा है.सत्संगति एक प्राणवायु है, जिसके संसर्ग मात्र से मनुष्य सदाचरण का पालक बन जाता है, दयावान, विनम्र, परोपकारी एवं ज्ञानवान बन जाता है, इसलिए तुलसीदास जी ने लिखा है कि.सठ सुधरहि सत्संगति पाईपारस परस कुधातु सुहाईसत्संगति से मनुष्य में धैर्य, साहस और सांत्वना का संचार होता है. मनुष्य इतना विवेकी बन जाता है कि वह बड़ी से बड़ी विपत्ति में भी संघर्ष करने का साहस नहीं छोड़ता. सुसंगति मनुष्य को आशा एवं विश्वास का ऐसा मजबूत संबल प्रदान करती है, जिसके सहारे वह घनघौर अंधकार में भी प्रकाश ढूढ़ लेता है.
सत्संगति के प्रभाव से बुरे लोगों के अच्छे बनने और कुसंगति के प्रभाव से अच्छे लोगों के बुरे बन जाने के अनेक उदाहरण हमारे बीच मौजूद है. पूर्व में डाकू रहे महर्षि वाल्मीकि ने सत्संगति में आने के बाद में ही महर्षि की उपाधि प्राप्त की एवं प्रसिद्ध अमर ग्रंथ रामायण की रचना की. इसी प्रकार अंगुलीमाल ने महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने के बाद हत्या, लूटपाट के कार्य को छोड़कर सदाचरण के मार्ग को अपना लिया. जबकि ठीक इसके विपरीत कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा है.सत्संगति एक प्राणवायु है, जिसके संसर्ग मात्र से मनुष्य सदाचरण का पालक बन जाता है, दयावान, विनम्र, परोपकारी एवं ज्ञानवान बन जाता है, इसलिए तुलसीदास जी ने लिखा है कि.सठ सुधरहि सत्संगति पाईपारस परस कुधातु सुहाईसत्संगति से मनुष्य में धैर्य, साहस और सांत्वना का संचार होता है. मनुष्य इतना विवेकी बन जाता है कि वह बड़ी से बड़ी विपत्ति में भी संघर्ष करने का साहस नहीं छोड़ता. सुसंगति मनुष्य को आशा एवं विश्वास का ऐसा मजबूत संबल प्रदान करती है, जिसके सहारे वह घनघौर अंधकार में भी प्रकाश ढूढ़ लेता है.उत्तम मनुष्यों की संगति से जीवन में स्म्रद्धि एवं सम्मान के सारे दरवाजे खुल जाते है. कुधातु लोहा जिस प्रकार पारस की संगति से मूल्यवान सोना बन जाता है, उसी प्रकार एक साधारण मनुष्य भी महापुरुषों, ज्ञानियों विचारवानो एवं महात्माओं की संगत से बहुत ऊँचे स्तर को प्राप्त करता है. वानरों भालुओं को कौन याद रखता हैं, लेकिन हनुमान, सुग्रीव, अंगद, जामवंत आदि श्रीराम की संगति पाने की कारण विस्मरणीय बन गये.
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