Satsangati ka fal short story in Hindi
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सत्संगति शब्द दो शब्दों के मेल से बना है सत और संगति। सत का अर्थ है – अच्छा और संगति का अर्थ है -साथ। सत्संगति का सम्पूर्ण अर्थ है अच्छे लोगों का संग। एक कहावत के अनुसार जैसी संगत वैसी रंगत यानि के इन्सान जैसी संगत में रहता है व वैसा ही बन जाता है। सज्जनों की संगति को सत्संगति कहा जाता है। संगति का असर हर इंसान पर जरूर पड़ता है मानव बुरी संगति से बुरा बन जाता है और अच्छी संगति से अच्छा बन जाता है। इसीलिए हमें सदैव अच्छी संगति में ही रहना चाहिए।
Satsangati Ki Mahatva : सत्संगति की महत्ता
मानव के जीवन में सत्संगति का बड़ा महत्व होता है। अच्छे लोगों के साथ व्यक्ति अच्छे विचारों को सीखता है और बुरे लोगों के साथ बुरे विचारों सीखता है। इस पर एक कहावत प्रचलित है के “काजिल की कोठरी में चाहे कितना भी बुद्धिमान व्यक्ति क्यों ना हो उसे थोडा बहुत काजिल तो लग ही जाता है। सत्संगति (Satsangati) इन्सान को असत्य से सत्य की तरफ़ , अज्ञान से ज्ञान की तरफ , अन्धकार से प्रकाश की तरफ और घृणा से प्रेम की तरफ ले जाती है। महान लोगों की संगत अत्यंत लाभकारी होती है कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की एक बूँद भी मोती जैसी दिखाई देती है।
Satsangati Ka Prabhav (Asar)
कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है कुसंगति के चलते महान से महान आदमी भी पतन होते देखे गए हैं मंथरा की संगती के कारण कैकेयी ने राम को वनवास भेजने का कलंक आपने सिर लिया , गंगा जब समुन्द्र में मिलती है तो वह भी अपनी पवित्रता खो बैठती है।
विद्यार्थी जीवन में तो सत्संगति का विशेष महत्व रहता है इस समय दौरान विद्यार्थी पर जो भी अच्छे -बुरे संस्कार पड़ते हैं वह जीवनभर छूटते नहीं इसीलिए युवकों को अपनी संगति की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए। अच्छी संगति मनुष्य को सम्मान और उन्नति दिलाती है। इससे मनुष्य को नाम , शौहरत सब कुछ मिलता है। जबकि कुसंगति से अपमान ही सहना पड़ता है।
सत्संगति (Satsangati) दो प्रकार से की जा सकती है एक गुणवान व्यक्ति की संगति में रहकर उनसे ज्ञान की प्राप्ति और अच्छे विचारों को ग्रहण करें और दूसरी पुस्तकों की संगति से हम ज्ञान हासिल कर सकते हैं। सत्संगति से मानव को ज्ञान में वृद्धि होती है। तुलसीदास जी ने लिखा है “बिनु सत्संग विवेक ना होई” जिसका अर्थ है के सत्संगति के बिना ज्ञान हासिल नहीं किया जा सकता। इसीलिए अच्छे लोगों की संगत में रहने से हमारे आचरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है इससे हमारा चरित्र उच्च और निर्मल हो जाता है। एक दुष्ट व्यक्ति के सज्जनों की संगत में रहने से वह ज्ञानी और विनम्र बन जाता है।
सत्संगति से मानव में धैर्य और साहस का संचार होता है। सत्संगति अज्ञानी इन्सान को भी इतना बहादुर और विवेकशील बना देती है के वह हर बड़ी से बड़ी मुश्किल में भी साहस नहीं छोड़ता इसीलिए सत्संगति की महत्ता बड़ी निराली होती है जैसे जालिम डाकू अंगुलिमाल का महात्मा बुद्ध की संगति से ह्रदय परिवर्तन हो गया था वह एक डाकू से एक अच्छा और दयालु इन्सान बन गया था और महर्षि वाल्मीकि का भी साधू संतों के उपदेशों का गहरा असर हुआ था जिस कारण वह एक डाकू से महर्षि बने।
इसके उल्ट कुसंगति मनुष्य का जीवन तबाह कर देती है मानव में जितनी भी बुरी आदतें होती हैं सभी कुसंगति में रहने से होती हैं बुद्धिमान से बुद्धिमान इन्सान पर भी कुसंगति का प्रभाव जरूर पड़ता है कुसंगति तो मनुष्य की बुद्धि को तबाह कर देती है मनुष्य अपनी स्वंय की संगति से पहचाना जाता है दुर्जन इंसान के साथ एक अच्छे इन्सान को पग -पग पर अपमान सहना पड़ता है। इसीलिए सभी को कुसंगति से दूर ही रहना चाहिए और सत्संगति को अपनाना चाहिए।
सत्संगति शब्द दो शब्दों के मेल से बना है सत और संगति। सत का अर्थ है – अच्छा और संगति का अर्थ है -साथ। सत्संगति का सम्पूर्ण अर्थ है अच्छे लोगों का संग। एक कहावत के अनुसार जैसी संगत वैसी रंगत यानि के इन्सान जैसी संगत में रहता है व वैसा ही बन जाता है। सज्जनों की संगति को सत्संगति कहा जाता है। संगति का असर हर इंसान पर जरूर पड़ता है मानव बुरी संगति से बुरा बन जाता है और अच्छी संगति से अच्छा बन जाता है। इसीलिए हमें सदैव अच्छी संगति में ही रहना चाहिए।
Satsangati Ki Mahatva : सत्संगति की महत्ता
मानव के जीवन में सत्संगति का बड़ा महत्व होता है। अच्छे लोगों के साथ व्यक्ति अच्छे विचारों को सीखता है और बुरे लोगों के साथ बुरे विचारों सीखता है। इस पर एक कहावत प्रचलित है के “काजिल की कोठरी में चाहे कितना भी बुद्धिमान व्यक्ति क्यों ना हो उसे थोडा बहुत काजिल तो लग ही जाता है। सत्संगति (Satsangati) इन्सान को असत्य से सत्य की तरफ़ , अज्ञान से ज्ञान की तरफ , अन्धकार से प्रकाश की तरफ और घृणा से प्रेम की तरफ ले जाती है। महान लोगों की संगत अत्यंत लाभकारी होती है कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की एक बूँद भी मोती जैसी दिखाई देती है।
Satsangati Ka Prabhav (Asar)
कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है कुसंगति के चलते महान से महान आदमी भी पतन होते देखे गए हैं मंथरा की संगती के कारण कैकेयी ने राम को वनवास भेजने का कलंक आपने सिर लिया , गंगा जब समुन्द्र में मिलती है तो वह भी अपनी पवित्रता खो बैठती है।
विद्यार्थी जीवन में तो सत्संगति का विशेष महत्व रहता है इस समय दौरान विद्यार्थी पर जो भी अच्छे -बुरे संस्कार पड़ते हैं वह जीवनभर छूटते नहीं इसीलिए युवकों को अपनी संगति की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए। अच्छी संगति मनुष्य को सम्मान और उन्नति दिलाती है। इससे मनुष्य को नाम , शौहरत सब कुछ मिलता है। जबकि कुसंगति से अपमान ही सहना पड़ता है।
सत्संगति (Satsangati) दो प्रकार से की जा सकती है एक गुणवान व्यक्ति की संगति में रहकर उनसे ज्ञान की प्राप्ति और अच्छे विचारों को ग्रहण करें और दूसरी पुस्तकों की संगति से हम ज्ञान हासिल कर सकते हैं। सत्संगति से मानव को ज्ञान में वृद्धि होती है। तुलसीदास जी ने लिखा है “बिनु सत्संग विवेक ना होई” जिसका अर्थ है के सत्संगति के बिना ज्ञान हासिल नहीं किया जा सकता। इसीलिए अच्छे लोगों की संगत में रहने से हमारे आचरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है इससे हमारा चरित्र उच्च और निर्मल हो जाता है। एक दुष्ट व्यक्ति के सज्जनों की संगत में रहने से वह ज्ञानी और विनम्र बन जाता है।
सत्संगति से मानव में धैर्य और साहस का संचार होता है। सत्संगति अज्ञानी इन्सान को भी इतना बहादुर और विवेकशील बना देती है के वह हर बड़ी से बड़ी मुश्किल में भी साहस नहीं छोड़ता इसीलिए सत्संगति की महत्ता बड़ी निराली होती है जैसे जालिम डाकू अंगुलिमाल का महात्मा बुद्ध की संगति से ह्रदय परिवर्तन हो गया था वह एक डाकू से एक अच्छा और दयालु इन्सान बन गया था और महर्षि वाल्मीकि का भी साधू संतों के उपदेशों का गहरा असर हुआ था जिस कारण वह एक डाकू से महर्षि बने।
इसके उल्ट कुसंगति मनुष्य का जीवन तबाह कर देती है मानव में जितनी भी बुरी आदतें होती हैं सभी कुसंगति में रहने से होती हैं बुद्धिमान से बुद्धिमान इन्सान पर भी कुसंगति का प्रभाव जरूर पड़ता है कुसंगति तो मनुष्य की बुद्धि को तबाह कर देती है मनुष्य अपनी स्वंय की संगति से पहचाना जाता है दुर्जन इंसान के साथ एक अच्छे इन्सान को पग -पग पर अपमान सहना पड़ता है। इसीलिए सभी को कुसंगति से दूर ही रहना चाहिए और सत्संगति को अपनाना चाहिए।
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