Sattavadi shashan ki pramukh visheshtayen?
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सर्वाधिकारवाद (Totalitarianism) या समग्रवादी व्यवस्था उस राजनीतिक व्यवस्था का नाम है जिसमें शासन अपनी सत्ता की कोई सीमारेखा नहीं मानता और लोगों के जीवन के सभी पहलुओं को यथासम्भव नियंत्रित करने को उद्यत रहता है। ऐसा शासन प्रायः किसी एक व्यक्ति, एक वर्ग या एक समूह के नियंत्रण में रहता है। समग्रवादी व्यवस्था लक्ष्यों, साधनों एवं नीतियों के दृष्टिकोण से प्रजातांत्रिक व्यवस्था के बिल्कुल विपरीत होता है। यह एक तानाशाह या शक्तिशाली समूह की इच्छाओं एवं संकल्पनाओं पर आधारित होता है। इसमें राजनैतिक शक्ति का केन्द्रीकरण होता है अर्थात् राजनैतिक शक्ति एक व्यक्ति, समूह या दल के हाथ में होती है। ये आर्थिक क्रियाओं का सम्पूर्ण नियंत्रण करता है। इसमें एक सर्वशक्तिशाली केन्द्र से सम्पूर्ण व्यवस्था को नियंत्रित किया जाता है। इसमें सांस्कृतिक विभिन्नता को समाप्त कर दिया जाता है और सम्पूर्ण समाज को सामान्य संस्कृति के अधीन करने का प्रयत्न किया जाता है। ऐसा प्रयत्न वास्तव में दृष्टिकोणों की विभिन्नता की समाप्ति के लिये किया जाता है और ऐसा करके केन्द्र द्वारा दिये जाने वाले आदेशों और आज्ञाओं के पालन में पड़ने वाली रूकावटों को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है। समग्रवादी व्यवस्था का सम्बन्ध एक सर्वशक्तिशाली राज्य से है। इसमें पूर्ण या समग्र को वास्तविक मानकर इसके हितों की पूर्ति के लिये आयोजन किया जाता है। किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाएगा, कब, कहाँ, कैसे और किनके द्वारा किया जायेगा और कौन लोग इसमें लाभान्वित होगें, इसका निश्चय मात्र एक राजनैतिक दल, समूह या व्यक्ति द्वारा किया जाता है। इसमें व्यक्तिगत साहस व क्रिया के लिये स्थान नहीं होता है। सम्पूर्ण सम्पत्ति व उत्पादन के समस्त साधनों पर राज्य का अधिकार होता है।
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