satysangati essay in sanskrit
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सतां सज्जनानां संगतिः । सज्जनानां संगत्या ह्रदयं विचारं च पवित्रम् भवति । अनया जनः स्वार्थभावं परित्यज्य लोककल्याणकामः भवति । दुर्जनानां संगत्या दुर्बुद्धिः आगच्छति । दुर्बुद्धिः दुःखजननी अस्ति । सज्जनानां संगत्या दुर्जनः अपि सज्जनः भवति । दुष्टदुर्योधनसंगत्या भीष्मोऽपि गोहरणे गतः । ऋषीणाम् संगत्या व्याधः वाल्मीकिः अपि कवि वाल्मीकिः अभवत् । रावणसंगत्या समुद्रः अपि क्षुद्र नदीव बन्धनं प्राप्तः । अतः साध्विदमुच्यते-सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ।
दूरीकरोति कुमतिं विमलीकरोति चेतश्र्चिरंतनमधं चुलुकीकरोति ।
भूतेषु किं च करुणां बहुलीकरोति संगः सतां किमु न मंगलमातनोति ॥
सज्जनों का संगति (साथ) सत्संगति कहा जाता है । सज्जनों के संगति से ह्रदय का विचार पवित्र होता है । इससे लोग स्वार्थ भाव त्यागकर जनकल्याणकारी कार्य करता है । दर्जनों के संगति से दुर्बुद्धि आती है । दुर्बुद्धि दुःख देनेवाली होती है । सज्जनों के संगति से दुर्जन भी सज्जन हो जाता है । दुष्टदुर्योधन के साथ रहने से भीष्म भी गाय के हरण में गए थे । ऋषियों के संगति से व्याधा वाल्मीकि भी कवि वाल्मीकि हो गए । रावण के संगति से समुद्र भी क्षुद्र नदी को बाँन्धने लगे । अतः साधुओं के द्वारा कहा गया है कि सत्संगति से क्या संभव नहीं है ।
कुमति को दूर करता है, चित्त को निर्मल बनाता है । लंबे समय के पाप को अंजलि में समा जाय एसा बनाता है,
करुणा का विस्तार करता है; सत्संग मानव को कौन सा मंगल नहीं देता ?