सड़कों पर बढ़ रहे निरंतर जाम की समस्या को दूर करने के लिए सरकार द्वारा चलाए गए और जीवन फार्मूले के विषय पर अपनी राय देते हुए किसी प्रतिष्ठित समाचार पत्र के संपादक को पत्र लिखिए
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हम सब कभी न कभी ट्रैफ़िक जाम में फंसे हैं. जाम में अटक जाएं तो लगता है कि ट्रैफ़िक की लाइट बदल ही नहीं रही है. कई कई बार मीलों लंबी लाइन लग जाती है. धीमा चलता ट्रैफ़िक दम घोंटता सा मालूम होता है.
मज़े की बात है कि रेंगता हुआ ट्रैफ़िक आज की बेइंतिहा तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी का अटूट हिस्सा बन गया है.
सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. ट्रैफ़िक जाम दूर करने वाले सिस्टम इस भीड़ से निपटने में नाकाम साबित हो रहे हैं. कभी बारिश, कभी कोहरा और कभी बिना वजह ही लगे जाम में लोग घंटों फंसे रहते हैं.
एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ 2015 में दुनिया भर में 1.3 अरब गाड़ियां थीं. विकासशील देशों में गाड़ियों की बिक्री के हिसाब से माना जा रहा है कि 2040 तक दुनिया भर में क़रीब 2 अरब गाड़ियां सड़कों पर होंगी.
नई सड़कें, बाईपास और फ्लाईओवर बनने के बावजूद, इन गाड़ियों को तेज़ रफ़्तार से चलाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होगी. यानी आने वाले दौर में ट्रैफ़िक जाम की समस्या और बढ़ेगी.
इन जाम से निपटने के लिए लोग अक़्लमंद मशीनों की तरफ़ बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं. उन्हें लगता है कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से हम ट्रैफिक जाम से राहत पा सकते हैं.
ट्रैफिक जाम
इमेज स्रोत, GETTY IMAGES
बेंगलुरु का मॉनिटरिंग सिस्टम
कुछ लोग ख़ुद से चलने वाली गाड़ियों को हर मर्ज़ की दवा मानते हैं. क्योंकि रोबोट से चलने वाली ये गाड़ियां ट्रैफ़िक के नियम नहीं तोड़ेंगी. लेन में चलेंगी और मुश्किल वक़्त में ज़्यादा तेज़ी से फ़ैसले ले सकेंगी. लेकिन, अभी सड़कों पर सेल्फ ड्राइविंग कारों का असर दिखने में कम से कम दो दशक लगेंगे.
पर, अगले दो दशकों में योजना बनाने वालों को दिनों-दिन बढ़ती गाड़ियों की भीड़ से निपटना होगा. ऐसा सिस्टम विकसित करना होगा, जो जाम लगने पर फ़ौरन इससे निजात दिलाने में जुट जाए.
बेंगलुरु में व्यस्त समय के दौरान ट्रैफ़िक की रफ़्तार औसतन 4 किलोमीटर प्रति घंटे होती है. यानी ये कछुए की तरह रेंगता है.
इस जाम से निपटने के लिए सीमेंस कंपनी ने एक मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित किया है. ये सिस्टम ट्रैफिक कैमरों की मदद से जाम पर निगाह रखता है. किसी भी सड़क पर गाड़ियों की तादाद के हिसाब से आगे चल कर लगने वाले जाम का पहले से अंदाज़ा लगा लेता है. इसके बाद ट्रैफिक लाइटें इस तरह जलाई-बुझाई जाती हैं कि जाम न लगे.
हमारे ट्रैफिक सिस्टम को इस तरह काम करने के लिए ढेर सारे आंकड़े चाहिए. आज सीसीटीवी कैमरों से लेकर कारों में लगे नेविगेशन सिस्टम तक, ऐसे ढेर सारे आंकड़े मुहैया करा रहे हैं. बहुत से कैमरे तो सड़कों पर ही लगाए गए हैं, ताकि गाड़ियों की तादाद का अंदाज़ा लगाया जा सके.
ट्रैफिक लाइट पर कैमरे तो 1960 के दशक में ही लगाए जाने लगे थे.