सविनय अवज्ञा आंदोलन की सीमाएं क्या थी
Answers
Explanation:
सविनय अवज्ञा की सीमाएँ
दलितों की भागीदारी
शुरुआत में कांग्रेस ने दलितों पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि यह रुढ़िवादी सवर्ण हिंदुओं को नाराज नहीं करना चाहती थी। लेकिन महात्मा गाँधी का मानना था कि दलितों की स्थिति सुधारने के लिए सामाजिक सुधार आवश्यक थे। महात्मा गाँधी ने घोषणा की कि छुआछूत को समाप्त किए बगैर स्वराज की प्राप्ति नहीं हो सकती।
कई दलित नेता दलित समुदाय की समस्याओं का राजनैतिक समाधान चाहते थे। उन्होंने शैक्षिक संस्थानों में दलितों के लिए आरक्षण और दलितों के लिए पृथक चुनावी प्रक्रिया की मांग रखी। सविनय अवज्ञा आंदोलन में दलितों की भागीदारी सीमित ही रही।
डा. बी आर अंबेदकर ने 1930 में Depressed Classes Association का गठन किया। दूसरे गोल मेज सम्मेलन के दौरान, दलितों के लिए पृथक चुनाव प्रक्रिया के मुद्दे पर उनका गाँधीजी से टकराव भी हुआ था।
जब अंग्रेजी हुकूमत ने अंबेदकर की मांग मान ली तो गाँधीजी ने आमरण अनशन शुरु कर दिया। अंतत: अंबेदकर को गाँधीजी की बात माननी पड़ी। इसकी परिणति सितंबर 1932 में पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर के रूप में हुई। इससे दलित वर्गों के लिए राज्य और केन्द्र की विधायिकाओं में आरक्षित सीट पर मुहर लगा दी गई। लेकिन मतदान आम जनता द्वारा किया जाना था।
Answer:
सविनय अवज्ञा आंदोलन में दलितों की भागीदारी सीमित ही रही। दलितों की भागीदारीशुरुआत में कांग्रेस ने दलितों पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि यह रुढ़िवादी सवर्ण हिंदुओं को नाराज नहीं करना चाहती थी। लेकिन महात्मा गाँधी का मानना था कि दलितों की स्थिति सुधारने के लिए सामाजिक सुधार आवश्यक थे।