'सविनय अवज्ञा आंदोलन' में व्यावसायिक वर्गों की भूमिका का मूल्यांकन करें।
Answers
Answer:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन, ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा चलाये गए जन आन्दोलन में से एक था। 1929 ई. तक भारत को ब्रिटेन के इरादे पर शक़ होने लगा कि वह औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की अपनी घोषणा पर अमल करेगा कि नहीं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन (1929 ई.) में घोषणा कर दी कि उसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना है। महात्मा गांधी ने अपनी इस माँग पर ज़ोर देने के लिए 6 अप्रैल, 1930ई. को सविनय अविज्ञा आन्दोलन छेड़ा। जिसका उद्देश्य कुछ विशिष्ट प्रकार के ग़ैर-क़ानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना था।
'सविनय अवज्ञा आंदोलन' में व्यावसायिक वर्गों की भूमिका:
$\longrightarrow$ व्यापारिक वर्गों ने व्यावसायिक गतिविधियों को प्रतिबंधित करने वाली औपनिवेशिक नीतियों के खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त की।
$\longrightarrow$ वे विदेशी वस्तुओं के आयात और एक रुपये के स्टलिंग विदेशी विनिमय अनुपात के खिलाफ सुरक्षा चाहते थे जो आयात को हतोत्साहित करेगा।
$\longrightarrow$ व्यावसायिक हित को व्यवस्थित करने के लिए, उन्होंने 1920 में भारतीय औद्योगिक और वाणिज्यिक कांग्रेस का गठन किया और 1927 में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्रीज (फिक्की) का गठन किया।
$\longrightarrow$ उन्होंने आंदोलन के लिए वित्तीय सहायता दी।
$\longrightarrow$ उन्होंने आयातित सामान खरीदने और बेचने से इनकार कर दिया।