सवा सेर गेहूं कहानी स्पष्ट कीजिए
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शिल्पग्राम सभागार में मंचन : ऐसी है कहानी : चढ़ते ब्याज के साथ साढ़े पांच मन हो गया गेहूं, शोषण ने कुचली संवेदनाएं
नाटक एक गरीब किसान शंकर की कथा कहता है, जिसके घर एक साधु पधारते हैं और रात का भोजन मांग बैठते हैं। शंकर के घर में केवल जौ का आटा था। प|ी कमला उसे पास-पड़ोस से गेहूं का आटा मांग लाने को कहती है। गांव के महाजन, पंडित विप्र महाराज शंकर को सवा सेर गेहूं उधार देने का प्रस्ताव देते हैं। कालांतर में उस पर ब्याज लगा कर उस गेहूं के एवज में साढ़े पांच मन गेहूं अदा करने को बाध्य कर देते हैं। शंकर बंधुआ मजदूरी करने पर विवश हो जाता है और कुछ वर्षों मे भूख, अवसाद और लाचारी से दम तोड़ देता है। अंत में पंडित विप्र महाराज अपने सेवक से शंकर के पुत्र बुधवा को बुलावा भेजता है। नाटक इस मोड़ पर समाप्त होता है कि बुधवा भी बंधुआ मजदूरी कर बाप का लिया कर्ज उतारने को जुट जाता है और कष्ट पाता है।
ये थी कलाकारों की टीम : शंकर के किरदार में मोहम्मद इमरान, विप्र महाराज उम्मेद भाटी, महात्मा राजकुमार चौहान, रामेश्वर बाबू अभिषेक त्रिवेदी, कमला नेहा मेहता व बुधवा के किरदार में दीपक व्यास थे। अन्य कलाकारों में मनोहर सिंह चौहान, पार्थ सारथी तिवारी, हिमांशु जोशी, अंतिमा व्यास, अफजल हुसैन शामिल थे। वेषभूषा अभिषेक त्रिवेदी और मनोहर सिंह चौहान, रूप सज्जा मोहम्मद इमरान, नौशाद खान, मंच सज्जा मनोहर सिंह चौहान, प्रिया तापड़िया, अखिल लड्डा, अंकिता भट्टड, सार्थक कपूर, अर्पिता जैन संगीत गौरव वशिष्ठ की थी।
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देश की आजादी से पहले लिखी गई कहानी ‘सवा सेर गेहूं’ का मंचन रविवार शाम शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में हुआ। कहानी की विषयवस्तु ने न सिर्फ यह आभास कराया कि गरीबी में जीने वाले किसान किन कठोर परिस्थितियों का सामना करने को मजबूर है, बल्कि यह सीख दी कि शोषक समाज लगभग स्थायी रूप से हमारे इर्द-गिर्द मौजूद रहा है। कहानी का मुख्य किरदार शंकर अपनी जान की कीमत पर भी सवा सेर आटे की उधारी चुका नहीं पाता और उसके बेटे को भी बंधुआ मजदूर बनना पड़ता है। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से मासिक नाट्य संध्या ‘रंगशाला’ के तहत प्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की इस कथा काे कलाकाराें ने ऐसे जीवंत किया कि संदेश दर्शक दीर्घा पर भी छाप छोड़ गया। डाॅ. विकास कपूर के निर्देशन में जोधपुर की आकांक्षा सोसायटी के रंगकर्मियों ने शोषण की पराकाष्ठा को भावपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त किया।
शिल्पग्राम सभागार में मंचन : ऐसी है कहानी : चढ़ते ब्याज के साथ साढ़े पांच मन हो गया गेहूं, शोषण ने कुचली संवेदनाएं
नाटक एक गरीब किसान शंकर की कथा कहता है, जिसके घर एक साधु पधारते हैं और रात का भोजन मांग बैठते हैं। शंकर के घर में केवल जौ का आटा था। प|ी कमला उसे पास-पड़ोस से गेहूं का आटा मांग लाने को कहती है। गांव के महाजन, पंडित विप्र महाराज शंकर को सवा सेर गेहूं उधार देने का प्रस्ताव देते हैं। कालांतर में उस पर ब्याज लगा कर उस गेहूं के एवज में साढ़े पांच मन गेहूं अदा करने को बाध्य कर देते हैं। शंकर बंधुआ मजदूरी करने पर विवश हो जाता है और कुछ वर्षों मे भूख, अवसाद और लाचारी से दम तोड़ देता है। अंत में पंडित विप्र महाराज अपने सेवक से शंकर के पुत्र बुधवा को बुलावा भेजता है। नाटक इस मोड़ पर समाप्त होता है कि बुधवा भी बंधुआ मजदूरी कर बाप का लिया कर्ज उतारने को जुट जाता है और कष्ट पाता है।
ये थी कलाकारों की टीम : शंकर के किरदार में मोहम्मद इमरान, विप्र महाराज उम्मेद भाटी, महात्मा राजकुमार चौहान, रामेश्वर बाबू अभिषेक त्रिवेदी, कमला नेहा मेहता व बुधवा के किरदार में दीपक व्यास थे। अन्य कलाकारों में मनोहर सिंह चौहान, पार्थ सारथी तिवारी, हिमांशु जोशी, अंतिमा व्यास, अफजल हुसैन शामिल थे। वेषभूषा अभिषेक त्रिवेदी और मनोहर सिंह चौहान, रूप सज्जा मोहम्मद इमरान, नौशाद खान, मंच सज्जा मनोहर सिंह चौहान, प्रिया तापड़िया, अखिल लड्डा, अंकिता भट्टड, सार्थक कपूर, अर्पिता जैन संगीत गौरव वशिष्ठ की थी।
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