सवैया
सेष गनेस महेस दिनेस, सुरसहु जाहि निरंतर गावें।
जाहि अनादि अनंत अखंड अछेद अभेद सुवेद बतावै।
नारद से सुक व्यास र, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावें।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावै॥
-रसखान
कवि परिसय रसवार (1541-1603) का जन्म दिल्ली के एक पठान explain this please
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