School ke bare me meri pourv Kalpana
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जब मेरा दाखिला स्कूल में होना था तब मैं 6 वर्ष का था मुझे लगता था कि यह जो बच्चे हैं 10वीं 12वीं के वह सुबह सुबह कहां जाते हैं फिर जब मेरा भी नंबर लग गया तब पता चला कि वह कहां जाते हैं वह जाते हैं विद्यालय
धीरे-धीरे जब मेरी कक्षा बदलती गई पहली दूसरी तीसरी चौथी पांचवी छठी छठी तक मुझे समझ में आ गया कि गणित रटी नहीं जाती है समझी जाती है फिर मैंने थोड़ी कोशिश कर गणित को समझने की कोशिश की परंतु उस पर मेरा बस नहीं था लेकिन जब मैं आठवीं कक्षा में आया तब मेरी गणित से घनिष्ठ मित्रता हो गई थी अब स्कूल मानो खेल का मैदान लगने लगा था कि रोज रोज आने का मन कर रहा था फिर धीरे-धीरे करते हैं दसवीं तक आ गए बोर्ड की परीक्षा शुरू हो गई उसमें भी गणेश ने मेरा बहुत सहयोग किया जब भी मन उदास होता गणित पकड़ कर बैठ जाते और प्रश्न करते रहते परंतु जब बारहवीं कक्षा का फेयरवेल हुआ तब स्कूल की अहमियत समझ में आने लगी जिन शिक्षकों को हम मन ही मन कोसते थे उस समय बहुत याद आने लगे और वह दोस्त जिनके साथ हम बचपन गुजारते थे उनसे दूर जाने का डर परंतु जो होनी थी वह होकर रहती थी हम दोस्त जब भी आपस में बात करते हैं तो स्कूल के उन दिनों की बात करते हैं जब और हम अपनी दुनिया में खोए रहते थे
विद्यालय सावधान विश्राम इसी शब्द से हमारी दिन की शुरुआत हुआ करती थी बस यही बातें हैं हमारे जीवन भर हमें याद दिलाती रहती है हमें यह याद दिलाती रहती है कि हमारे लिए कोई दुनिया हुआ करती थी और उसे दुनिया का नाम था विद्यालय
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