SCHOOL OF EXT-
rant
बादल से जब सहा न जाता
अपने जल का संचय,
बस, वह बरस-बरस भर देता
नदिया, नहर, जलाशय।
वह तो बस कर देता छाया
चाहे जो सुस्ताए।
खिलते समय न फूल सोचता
कौन उसे पाएगा?
उसकी खुशबू अपनी साँसों
में भर इतराएगा।
जो स्वभाव से ही दाता हैं
उन्हें न कोई भ्रम है,
भेदभाव करते हैं वे ही
जिनकी पूजा कम है।
-बालस्वरूप राही
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SCHOOL OF EXT-
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बादल से जब सहा न जाता
अपने जल का संचय,
बस, वह बरस-बरस भर देता
नदिया, नहर, जलाशय।
वह तो बस कर देता छाया
चाहे जो सुस्ताए।
खिलते समय न फूल सोचता
कौन उसे पाएगा?
उसकी खुशबू अपनी साँसों
में भर इतराएगा।
जो स्वभाव से ही दाता हैं
उन्हें न कोई भ्रम है,
भेदभाव करते हैं वे ही
जिनकी पूजा कम है।
-बालस्वरूप राही
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