Hindi, asked by vseveer, 2 months ago

SCHOOL OF EXT-
rant
बादल से जब सहा न जाता
अपने जल का संचय,
बस, वह बरस-बरस भर देता
नदिया, नहर, जलाशय।
वह तो बस कर देता छाया
चाहे जो सुस्ताए।
खिलते समय न फूल सोचता
कौन उसे पाएगा?
उसकी खुशबू अपनी साँसों
में भर इतराएगा।
जो स्वभाव से ही दाता हैं
उन्हें न कोई भ्रम है,
भेदभाव करते हैं वे ही
जिनकी पूजा कम है।
-बालस्वरूप राही

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Answered by gkaler476
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Answer:

SCHOOL OF EXT-

rant

बादल से जब सहा न जाता

अपने जल का संचय,

बस, वह बरस-बरस भर देता

नदिया, नहर, जलाशय।

वह तो बस कर देता छाया

चाहे जो सुस्ताए।

खिलते समय न फूल सोचता

कौन उसे पाएगा?

उसकी खुशबू अपनी साँसों

में भर इतराएगा।

जो स्वभाव से ही दाता हैं

उन्हें न कोई भ्रम है,

भेदभाव करते हैं वे ही

जिनकी पूजा कम है।

-बालस्वरूप राही

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