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आपुहि तो मन हेरि हँसे,
तिरछे करि नैननि नेह चाव मैं
।
हाय दई! सुविसारि दई सुधि,
कैसी करें, सौ कहौ कित जावँ मैं।
मीत सुजान, अनीति कहा यह,
ऐसी न चाहिए प्रीति के भाव मैं।
मोहन मूरति देखिबें को
तरसावत हौ बसि एक ही गाँव में।।1॥
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Ye question hamari book ka nahin hai
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