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☆ANSWER☆
: एक जंगल में एक कौवा और हिरण रहते थे. दोनों में गाढ़ी मित्रता थी. अक्सर दोनों साथ रहते और मुसीबत के समय एक-दूसरे का साथ देते.
हिरण (Deer) हट्टा-कट्ठा और मांसल था. जंगल के कई जानवरों उसके मांस का भक्षण करने लालायित रहा करते थे. किंतु जब भी वे हिरण के निकट आने का प्रयास करते, कौवा (Crow) हिरण को चौकन्ना कर देता और हिरण कुंचाले भरता हुआ भाग खड़ा होता.
जंगल में रहने वाली एक लोमड़ी (Fox) भी हिरण के मांस का स्वाद लेना चाहती थी. लेकिन कौवे के रहते ये संभव न था. एक दिन उसने सोचा, “क्यों ना हिरण से मित्रता कर उसका विश्वास प्राप्त कर लूं? फिर किसी दिन अवसर पाकर उसे दूर कहीं ले जाऊंगी और उसका काम-तमाम कर दूंगी. तब जी-भरकर उसके मांस का भक्षण करूंगी.”
उस दिन के बाद से वह ऐसा अवसर तलाशने लगी, जब हिरण अकेला हो और कौवा उसके आस-पास न हो. एक दिन उस वह अवसर प्राप्त हो ही गया. जंगल में उसे हिरण अकेला घूमता हुआ दिखाई पड़ा, तो धीरे से उसके पास पहुँची और स्वर में मिठास घोलकर बोली, “मित्र! मैं दूसरे जंगल से आई हूँ. यहाँ मेरा कोई मित्र नहीं है. तुम मुझे भले लगे. क्या तुम मुझसे मित्रता करोगे? मैं तुम्हें जंगल के उस पार के हरे-भरे खेतों में ले चलूंगी. वहाँ तुम पेट भरकर हरी घास चरना.”
हिरण लोमड़ी की मीठी बातों में आ गया और उससे मित्रवत व्यवहार करने लगा. उस दिन के बाद से लोमड़ी रोज़ हिरण के पास आती और उससे ढेर सारी बातें करती.
एक दिन कौवे ने हिरण को लोमड़ी से बातें करते हुए देख लिया. उसे लोमड़ी की मंशा समझते देर न लगी. लोमड़ी के जाते ही वह हिरण के पास गया और उसे चेताते हुए बोला, “मित्र! ये लोमड़ी दुष्ट है. इसकी मंशा तुम्हें मारकर खा जाने की है. प्राण बचाने हैं, तो इससे दूरी बनाकर रखो.”
हिरण बोला, “मित्र! हर किसी को शंका की दृष्टि से देखना उचित नहीं है. लोमड़ी सदा मुझसे मित्रवत रही है. विश्वास करो वह शत्रु नहीं, मित्र है. उसके द्वारा मुझे हानि पहुँचाने का प्रश्न ही नहीं उठता. तुम निश्चिंत रहो.”
हिरण का उत्तर सुनकर कौवा चला गया. किंतु उसे लोमड़ी पर तनिक भी विश्वास नहीं था. वह दूर से हिरण पर नज़र रखने लगा.
एक दिन लोमड़ी ने देखा कि मक्के के एक खेत में उसके मालिक ने मक्का चोर को पकड़ने के लिए जाल बिछा कर रखा है. हिरण को फंसाने का यह एक सुअवसर था. लोमड़ी तुरंत हिरण के पास गई और बोली, “मित्र! आज मैं तुम्हें मक्के के खेत में ले चलता हूँ.”
हिरण सहर्ष तैयार हो गया. दोनों जंगल के पास स्थित मक्के के खेत में पहुँचे. किंतु खेत में प्रवेश करते ही हिरण खेत के मालिक द्वारा बिछाए जाल में फंस गया. उसने निकलने का बहुत प्रयास किया, किंतु सफ़ल नहीं हो सका.
उसने लोमड़ी से सहायता की गुहार लगाई. लेकिन लोमड़ी तो इस फ़िराक में थी कि कब खेत का मालिक हिरण को मारे और वह भी अवसर देखकर उसका मांस चख सके. उसने हिरण को उत्तर दिया, “इतने मजबूत जाल को काटना मेरे बस की बात कहाँ? तुम यहीं ठहरो, मैं सहायता लेकर आती हूँ.”
यह कहकर लोमड़ी खेत के पास ही झाड़ियों के पीछे छुपकर खेत के मालिक के आने की प्रतीक्षा करने लगी.
इधर जंगल में अपने मित्र हिरण को न पाकर कौवा खोज-बीन करता हुआ मक्के के खेत में आ पहुँचा. वहाँ हिरण को जाल में फंसा देख वह उसके पास गया और बोला, “मित्र! चिंता मत करो. मैं तुम्हारे साथ हूँ. मैं तुम्हारे प्राणों की रक्षा करूंगा. अब तुम ठीक वैसा करो, जैसा मैं कहता हूँ. सांस रोककर बिना हिले-डुले जमीन पर ऐसे पड़ जाओ, मानो तुममें जान ही नहीं है. खेत का मालिक तुम्हें मरा समझकर ज्यों ही जाल हटायेगा, मैं आवाज़ देकर तुम्हें इशारा करूं दूंगा. बिना एक क्षण गंवाए तुम भाग खड़े होना.”
हिरण ने वैसा ही किया. खेत के मालिक ने उसे मरा जानकार जैसे ही जाल हटाया, कौवे ने इशारा कर दिया और इशारा मिलते ही हिरण भाग खड़ा हुआ. हिरण को भागता देख खेत के मालिक ने हाथ में पकड़ी कुल्हाड़ी पूरे बल से उसकी ओर फेंकी. किंतु हिरण बहुत दूर निकल चुका था. वह कुल्हाड़ी झाड़ी के पीछे छुपी लोमड़ी के सिर पर जाकर लगी और वो वहीं ढेर हो गई. लोमड़ी को अपनी दुष्टता का फल मिल चुका था.
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