self and society essay in hindi
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भारतवर्ष की वर्तमान परिस्थितियों में भावात्मक एकता का विषय बहुत महत्त्व रखता है । यह विषय एक राष्ट्रीय समस्या के रूप में देश के शुभचिंतकों और देशभक्तों का ध्यान प्रबल रूप में आकर्षित कर रहा है ।प्रत्यक्ष में यह बात कही जा रही है कि देश का भविष्य, उसकी सभी योजनाओं की सफलता और भावी पीढ़ी की सुख-समृद्धि उसके नागरिकों की भावात्मक एकता पर निर्भर है ।
भावात्मक एकता का तात्पर्य है- प्रत्येक भारतीय यह अनुभव करे कि भारतभूमि उसकी मातृभूमि है । यहाँ के प्रत्येक नागरिक का हित उसका अपना हित है । भारतभूमि, इसकी नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और निवासियों के प्रति, यहाँ के इतिहास, परंपरा, संस्कृति तथा सभ्यता के प्रति प्रत्येक भारतवासी का पूज्य भाव हो-यही भावात्मक एकता है ।
अतीत काल से हमारा देश एक भौगोलिक इकाई रहा है, किंतु उसमें राजनीतिक या प्रशासनिक एकता की भावना अंग्रेजों के पूर्व कभी नहीं आ पाई । इस दिशा में अशोक, समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त, अकबर जैसे महान् सम्राटों के प्रांत भी केवल अंशत: सफल रहे । प्राचीन और मध्यकाल में देश अनेकराजनीतिक और प्रशासनिक इकाइयों में विभक्त था, फिर भी यह बात सर्वमान्य है कि समस्त भारतीय जीवन एक प्रकार की एकता के सूत्र में आबद्ध था ।
जीवन की बाह्य विभिन्नताओं और असमानताओं के अंतराल में भावात्मक, रागात्मक और सांस्कृतिक एकता की मंदाकिनी प्रवाहित होती रहती थी । अंग्रेजी शासन काल में ही सर्वप्रथम इतने व्यापकु स्तर पर देश में राजनीतिक और प्रशासनिक एकता स्थापित हुई और उत्तराधिकार के रूप में यह स्वतंत्र भारत को भी प्राप्त हुई ।