Hindi, asked by krb1988, 6 months ago

शोभाराम कुमावत राजस्थान राज्य के गठन के
एक चरण में आने वाले किस संक्षिप्त कालीन
संघ के एकमात्र मुख्यमंत्री बने?​

Answers

Answered by kamalrajatjoshi94
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शोभाराम बुद्धाराम कुमावत (जन्म: ०७ जनवरी, १९१४[1] - मृत्यु: २३ मार्च, १९८४) एक् भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनेता थे । वह प्रथम लोक सभा और द्वितीय लोक सभा के सदस्य थे। बाबू शोभा राम राजस्थान के प्रथम् राजस्व मंत्री थे।[1]

शोभा राम कुमावत

जन्म

शोभाराम बुद्धाराम कुमावत

७ जनवरी १९१४

कठुमर, अलवर रियासत, राजपुताना एजेंसी, ब्रिटिश भारत

(वर्तमान में कठुमर, अलवर ज़िला, राजस्थान, भारत)

मृत्यु

२३ मार्च १९८४

जयपुर, राजस्थान, भारत

आवास

रघु मार्ग, अलवर नगर, अलवर ज़िला, राजस्थान, भारत

राष्ट्रीयता

भारतीय

अन्य नाम

बाबू शोभा राम

जातीयता

राजस्थानी

नागरिकता

भारतीय

शिक्षा प्राप्त की

राज ऋषि महाविद्यालय, अलवर

सनातन धर्म महविद्यालय, कानपुर

व्यवसाय

किसान | वकील | राजनीतिज्ञ

प्रसिद्धि कारण

भारतीय स्वतंत्रता सेनानी

किसान नेता

मत्स्य संघ एकमात्र मुख्यमंत्री

प्रथम लोक सभा के संसद सदस्य

द्वितीय लोक सभा के संसद सदस्य

राजस्थान के प्रथम राजस्व मन्त्री

राजस्थान विधान सभा के सदस्य

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्वाध्यक्ष

राजनैतिक पार्टी

अलवर राज्य प्रजामंडल

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

धार्मिक मान्यता

हिन्दू धर्म

जीवनसाथी

काम प्यारी कुमावत

(विवाह: १२ दिसम्बर १९३२)

माता-पिता

बुद्धा राम कुमावत (पिता)

जन - जन के नायक, स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी, शोभा राम कुमावत ने ही राजस्थान की राजनीति के बीज बोयें। बाबू शोभा राम अन्य पिछड़ा वर्ग एवं अन्य जातियों के चहेता थे, सभी वर्ग का सम्मान करते थे और सभी वर्ग भी उनका सम्मान करते थे । बाबू शोभा राम कुमावत जी को राजस्थान की राजनीति का चाणक्य और अलवर का गांधी कहा जाता है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा संपादित करें

शोभा राम कुमावत का जन्म पिता बुद्धा राम कुमावत[1] के यहाँ ०७ जनवरी, १९१४ को कठुमर, अलवर रियासत, ब्रिटिश भारत में हुआ था।[1] उन्होंने अपनी शिक्षा राज ऋषि कॉलेज, अलवर[1] और विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर (तत्कालीन सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर[1]) से प्राप्त की। कुमावत का विवाह् १२ दिसंबर, १९३२ को काम प्यारी कुमावत[1] के साथ हुआ था।

राजनीतिक भविष्य संपादित करें

बाबू शोभा राम कुमावत १८ मार्च, १९४८. को मत्स्य संघ के गठन से लेकर १५ मई १९४९ तक राजस्थान में विलय होने तक, इसके पहले और एकमात्र प्रधानमन्त्री (मुख्यमंत्री) थे।[1][2][3] इसके बाद वे १९४९ से १९५० तक राजस्थान सरकार के पहले राजस्व मंत्री थे।[1] १९५२ में वह अलवर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए प्रथम लोक सभा के सदस्य के रूप में चुना गये थे। उन्हें १९५७ में द्वितीय लोक सभा के लिए फिर से चुना गया, लेकिन १ ९६२ में तृतीय लोक सभा के चुनावों में उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।[4] इसके बाद वे चौथी (१९६७–७२) और पाँचवीं (१९७२–७७) विधान सभा में राजस्थान विधान सभा के सदस्य थे।

बाबू शोभा राम कुमावत ने सन् १९५६ से १९५७ तक राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया।[1]

राजनैतिक पदावधि संपादित करें

मत्स्य संघ के प्रधानमंत्री (केवल एकमात्र) (१८ मार्च, १९४८)[1]

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य (1948-1950)[1]

राजस्थान के राजस्व मंत्री (प्रथम) (०८ अप्रैल, १९४९ से ०५ जनवरी, १९५१ तक)[1]

प्रथम लोक सभा के संसद सदस्य (१७ अप्रैल १९५२ से ४ अप्रैल १९५७ तक)[1]

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेशाध्यक्ष (सन् १९५६ से १९५७ तक)

द्वितीय लोक सभा के संसद सदस्य (५ अप्रैल १९५७ से ३१ मार्च १९६२ तक)[4]

नगर विकास न्यास, अलवर के अध्यक्ष (प्रथम) (सन् १९६६ से सन् १९६७ तक)

४वीं राजस्थान विधान सभा के सदस्य (१९६७-१९७२)

राजस्थान के कृषि मंत्री (०५ सितंबर, १९६७ से २२ जून १९६८ तक)

राजस्थान के कृषि मंत्री (२२ जून १९६८ से १० जुलाई, १९७१ तक)

राजस्थान के वित्त मंत्री (१० जुलाई १९७१ से १६ मार्च, १९७२ तक)

५वीं राजस्थान विधान सभा के सदस्य (१९७२-१९७७)

महात्मा गांधी के साथ भूख हड़ताल संपादित करें

महात्मा गांधी ने १९४३ में पूना के आगा खान पैलेस में भूख हड़ताल की घोषणा की। शोभा राम कुमावत पर इसका जादुई असर हुआ और वह भी आठ दिनों के बाद गांधी के साथ भूख हड़ताल पर बैठ गए। बाबू शोभाराम की भूख हड़ताल १३ दिनों तक चली और महात्मा गांधी की हड़ताल के साथ ही टूटी। बाबू शोभाराम कुमावत् इस घटना से सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे।

प्रजामण्डल में स्वतंत्रता का सफर संपादित करें

प्रजामण्डल के विस्तार के लिए बाबू शोभाराम ने गाँव - गाँव साथियों के साथ दौरा कर सभाएं की। इसका असर यह हुआ कि जनता का मनोबल ऊपर उठा। प्रजामंडल के सदस्य सामन्तशाही के नुमाईंदे व पुलिस की ओर से अन्याय वाले स्थान पर पहुँचते। इस दौर में प्रजामंडल के नेत़ृत्व में राजनीतिक गतिविधियों का सिलसिला शुरू हुआ। वर्ष १९४३ से अलवर रियासत में आंदोलन जोर पकड़ने लगा। बाबू शोभाराम कुमावत के साथ मास्टर भोलानाथ, लाला काशी राम, फूल चनंद गोठड़िया एवं अन्य कार्यकर्ता भी अलख जगाने में जुटे थे। उन्हीं दिनों रामजी लाल अग्रवाल भी कानपुर, इन्दौर आदि स्थानों पर छात्र व मजदूर आंदोलन का अनुभव लेकर लौटे और प्रजामंडल के सहयोग में जुट गए। वर्ष १९४४ में गिरधर आश्रम में राजस्थान एवं मध्य भारत की रियासतों के प्रजामंडल कार्यकर्ताओं का सम्मेलन हुआ। इनमें लोकनायक जय प्रकाश नारायण, गोकुलभाई भट्ट जैसे बड़े नेता आए। अब जब भी कन्हीं प्रजा पर जुल्म हुआ, विरोध का स्वर मुखर हुआ। प्रजामंडल ने जागीर माफी जुल्म, कस्टम टैक्स, तंबाकू पर टैक्स, उत्पादन पर बढ़े कर, युद्धकोष की जबरन वसूली, पुलिस व राजस्व अधिकारियों की ज्यादती के विरोध में आन्दोलन किए। इस कार्य में कृपा दयाल माथुर, राम चन्द्र उपाध्याय, व अन्य कार्यकर्ताओं का साथ मिला। इसी तरह थानागाजी में तहसीलदार रिश्वतखोरी मामले का भी प्रजामंडल ने विरोध किया। इस आंदोलन में पं. हरि नारायण शर्मा, लक्ष्मी नारायण खण्डेलवाल व अन्य लोग थानागाजी पहुँचे और सभा की ।

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