"शुभद्रा कुमारी चौहान की 'झाँसी की रानी' पर एक परियोजना तैयार करो।
Book- NCRT Hindi
Class-6th
Chapter-10
Answers
Answer:
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हिंदी लेखक वृंदावनलाल वर्मा द्वारा लिखित एक ऐतिहासिक उपन्यास है। ... 1951 में इस उपन्यास का पुनर्प्रकाशन हुआ। उपन्यास का कथानक भारत में ब्रिटिश राज के काल में मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर आधारित है। साथ ही यह 1857 के विद्रोह की आधुनिक व्याख्या भी प्रस्तुत करता है।
Explanation:
लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। जहाँ चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली। सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।
ब्रितानी राज ने अपनी राज्य हड़प नीति(The Doctrine of Lapse, 1848-1856) के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया। हालांकि मुक़दमे में बहुत बहस हुई, परन्तु इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप रानी को झाँसी का क़िला छोड़कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।
झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी|
18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी।