शृंगार रस किसे कहते हैं
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जब विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी के संयोग से रति नामक स्थायी भाव रस रूप में परिणत हो, तो उसे श्रृंगार रस कहते हैं।
श्रृंगार रस के दो पक्ष होते है-
(1) संयोग श्रृंगार रस
(2) वियोग श्रृंगार रस
श्रृंगार रस के भेद | श्रृंगार रस के प्रकार व उदाहरण
1. संयोग श्रृंगार रस
जहाँ प्रेमी प्रेमिका की संयोग दशा में प्रेम का चित्रण, मधुर वातावरण, दर्शन, स्पर्श आदि का वर्णन हो, उसे सयोग श्रृंगार रस कहते है ।
उदाहरण-
कर मुंदरी की आरसी, प्रतिबिम्बित प्यौ पाइ।
पीठ दिये निधरक लखै, इकटक दीठि लगाइ॥
स्पष्टीकरण –
प्रस्तुत उदाहरण में संयोग श्रृंगार रस है।
स्थायी भाव – रति
आश्रय – नवोढ़ा बधू
आलम्बन – प्रियतम (नायक)
उद्दीपन – प्रियतम का प्रतिधिम्ब
अनुभाव – एक टंक से प्रतिविम्ब को देखना
व्यभिचारी भाव – हर्ष, औत्सुक्य
2. विप्रलम्भ (वियोग) श्रृंगार रस
जहाँ प्रेमी और प्रेमिका की वियोग दशा में प्रेम का चित्रण तथा विरह
बेदना का रसमय वर्णन हो, उसे विप्रलम्भ श्रृंगार कहते हैं।
उदाहरण –
हौं ही बोरी बिरह बरा, कैे बोरों सब गाउँ।
कहा जानिए कहत है, समिहि सीतकर नाउँ ॥।
स्पष्टीकरण-प्रस्तुत उदाहरण में विप्रलम्भ श्रृंगार रस है।
स्थायीभाव – रति
आश्रय – विरहिणी नायिका
उद्दीपन – चन्द्रमा, चाँदनी
व्यभिचारी भाव – विषाद, आवेग, देन्य आदि
आलम्बन – प्रियतम (नायक)
अनुभाव – अश्रु , स्वेद आदि
Answer:शृंगार रस ‘ रसों का राजा ‘ एवं महत्वपूर्ण प्रथम रस माना गया है। विद्वानों के मतानुसार श्रृंगार रस की उत्पत्ति ‘ श्रृंग + आर ‘ से हुई है। इसमें ‘श्रृंग’ का अर्थ है – काम की वृद्धि तथा ‘आर’ का अर्थ है प्राप्ति। अर्थात कामवासना की वृद्धि एवं प्राप्ति ही श्रृंगार है इसका स्थाई भाव ‘रति’ है।
और यह दो प्रकार का होता है-( i) संयोग श्रृंगार और
(ii) वियोग श्रृंगार
Sorry it have not short answer but when u learn this u can be able to understand शृंगार रस
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