शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है इस दिशा में लेखिका के प्रयासों का उल्लेख कीजिए
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' शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है ' - इस दिशा में लेखिका ने निम्न प्रयास किए । , जब उनके दो बच्चे स्कूल जाने लायक हो गए | लेखिका कर्नाटक के एक छोटे कस्बे में रहती थी । उन्होंने वहाँ के कैथोलिक चर्च के विशप से एक स्कूल खोलने का आग्रह किया । परंतु उन्होंने क्रिश्चियन बच्चों की संख्या कम होने की बात कहकर स्कूल खोलने से मना कर दिया । लेखिका ने कहा कि गैर क्रिश्चियन बच्चों को भी शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है , परंतु विशप तैयार नहीं हुए । ऐसे में लेखिका ने आगे बढ़ते हुए अपने दम पर एक ऐसा स्कूल खोलने का मन बना लिया जिसमें अंग्रेज़ी , कन्नड़ और हिन्दी तीन भाषाएँ पढ़ाई जाएँगी । लोगों ने भी लेखिका का साथ दिया और वे बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाने में सफल रहीं ।
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लेखिका जब कर्नाटक के छोटे से गांव बागलकोट पहुंची तो उसके दो बच्चे हो चुके थे । जो स्कूल जाने योग्य थे। बागलकोट में कोई स्कूल नहीं था। उसने पास के एक कैथोलिक बिशप से मिशन और वहां के सीमेंट कारखाने की आर्थिक सहायता से बागलकोट में एक प्राइमरी स्कूल खोलने का अनुरोध किया। क्योंकि वहां ईसाईयों की संख्या कम थी इसलिए उन्होंने स्कूल खोलने में असमर्थता जाहिर की। तब लेखिका ने अपने जैसे विचार वाले लोगों की सहायता से अंग्रेजी - कन्नड़ - हिंदी भाषाएं पढ़ाने वाला प्राइमरी स्कूल खोला और बाद में उसे कर्नाटक सरकार से मान्यता भी दिलवाई।
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