शिक्षा का उदेश्य इस विषय पर अनुछेद लिखीए
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शिक्षा ज्ञानवर्धन का साधन है। सांस्कृतिक जीवन का माध्यम है। चरित्र की निर्माता है। जीवनोपार्जन का द्वार है। अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग करते हुए जीवन जीने के कला के साथ-साथ व्यक्तित्व के विकास का पथ-प्रदर्शन भी है।
मानव विकास का मापदण्ड ज्ञान है। ज्ञान से बुद्धि प्रशिक्षित होती है तथा मस्तिष्क में विचारों का जन्म होता है। यह विचार विवेक जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता का साधन है। शारीरिक हो या मानसिक, आधि हो या व्याधि, समस्याएँ हों या संकट, सभी का समाधान ज्ञान की चाबी से होता है।
ज्ञान प्राप्ति के लिए शिक्षा-ज्ञान प्राप्ति शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य है। आधुनिक सभ्यता शिक्षा के माध्यम द्वारा ज्ञान प्राप्त करके विकसित हुई है। न तो ज्ञान अपने आप में सम्पूर्ण शिक्षा है, न ही शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य, यह तो शिक्षा का मात्र एक भाग है और एक साधन है। अत: शिक्षा का उद्देश्य सांस्कृतिक ज्ञान की प्राप्ति होना चाहिए ताकि मानव सभ्य, शिष्ट, संयत बने, साहित्य, संगीत और कला आदि का विकास कर सके। जीवन को मूल्यवान् बनाकर जीवन स्तर को ऊँचा उठा सके। साथ ही आने वाली पीढ़ी को सांस्कृतिक धरोहर सौंप सके।
चरित्र के लिए शिक्षा-चरित्र का अर्थ है, वे सब बातें जो आचरण, व्यवहार आदि के रूप में की जायें।’ प्लूटार्क के अनुसार, ‘चरित्र केवल सुदीर्घकालीन आदत है।’ वाल्मीकि का कथन है, ‘मनुष्य के चरित्र से ही ज्ञात होता है कि वह कुलीन है या अकुलीन, वीर है या दंभी, पवित्र है या अपवित्र।’