शिक्षा का वास्तविक अर्य और प्रयोजन को जावहारिक क्सन होता है कि के होने
केस
अहम और गर्व का हाथी उसके मनसिक पर बाँध देना। हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्तेि बाद जेझिसे
और पदयात चली आ रही है, वह लगभग डेड सी साल पुरानी है इसनेरू ज्यादक सोच का काम किया है. इस
बात पर ध्यान नहीं दिया है कि इस देश को अपनी आसकताएँ और सोमाया है इस देश के लिये किस
प्रकार की बावहारिक शिक्षा की आवश्यकता है। बस सुशिक्षित कोरू लोपले इस देश में उडेल है जे
किसी दप्तर में क्लर्क बनने का सपना देख सकते है।
१. शिक्षा का मुख उद्देश्य क्या है?
२. हमारी देश की शिक्षा नीति कितनी पुरानी है?
३. वर्तमान शिक्षा पदपति के रहते व्यक्ति क्या सपना देख सकता है?
४. साक्षर और स्वतंत्रता का विलोम लिखो
५. उपर्युक गडांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
please answer
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शिक्षा का वास्तविक अर्य और प्रयोजन को जावहारिक क्सन होता है कि के होने
केस
अहम और गर्व का हाथी उसके मनसिक पर बाँध देना। हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्तेि बाद जेझिसे
और पदयात चली आ रही है, वह लगभग डेड सी साल पुरानी है इसनेरू ज्यादक सोच का काम किया है. इस
बात पर ध्यान नहीं दिया है कि इस देश को अपनी आसकताएँ और सोमाया है इस देश के लिये किस
प्रकार की बावहारिक शिक्षा की आवश्यकता है। बस सुशिक्षित कोरू लोपले इस देश में उडेल है जे
किसी दप्तर में क्लर्क बनने का सपना देख सकते है।
१. शिक्षा का मुख उद्देश्य क्या है?
२. हमारी देश की शिक्षा नीति कितनी पुरानी है?
३. वर्तमान शिक्षा पदपति के रहते व्यक्ति क्या सपना देख सकता है?
४. साक्षर और स्वतंत्रता का विलोम लिखो
५. उपर्युक गडांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
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प्रयोजनवाद या फलानुमेयप्रामाण्यवाद या व्यवहारवाद अंगरेजी के "प्रैगमैटिज़्म" (Pragmatism) का समानार्थवाची शब्द है और प्रैगमैटिज़्म शब्द यूनानी भाषा के 'Pragma' शब्द से बना है, जिसका अर्थ "क्रिया" या "कर्म" होता है। तदनुसार "फलानुमेयप्रामाण्यवाद" एक ऐसी विचारधारा है जो ज्ञान के सभी क्षेत्रों में उसके क्रियात्मक प्रभाव या फल को एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान देती है। इसके अनुसार हमारी सभी वस्तुविषयक धारणाएँ उनके संभव व्यावहारिक परिणामों की ही धारणाएँ होती हैं। अत: किसी भी बात या विचार को सही सही समझने के लिए उसके व्यावहारिक परिणामों की परीक्षा करना आवश्यक है।
प्रयोजनवाद एक नवीनतम् दार्शनिक विचारधारा है। वर्तमान युग में दर्शन एवं शिक्षा के विभिन्न विचारधाराओं में इस विचारधारा को सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है।
यथार्थवाद ही एक ऐसी विचारधारा है जिसका बीजारोपण मानव-मस्तिष्क में अति प्राचीन काल में ही हो गया था। यथार्थवाद किसी एक सुगठित दार्शनिक विचारधारा का नाम न होकर उन सभी विचारों का प्रतिनिधित्व करता है जो यह मानते हैं कि वस्तु का अस्तित्व स्वतंत्र रूप से है। आदर्शवादी यह मानता है कि ‘वस्तु’ का अस्तित्व हमारे ज्ञान पर निर्भर करता है। यदि यह विचार सही है तो वस्तु की कोई स्थिति नहीं है। इसके ठीक विपरीत यथार्थवादी मानते हैं कि वस्तु का स्वतंत्र अस्तित्व है चाहे वह हमारे विचारों में हो अथवा नहीं। वस्तु तथा उससे सम्बन्धित ज्ञान दोनों पृथक-पृथक सत्तायें है। संसार में अनेक ऐसी वस्तुयें हैं जिनके सम्बन्ध में हमें जानकारी नहीं है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वे अस्तित्व में है ही नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि वस्तु की स्वतंत्र स्थिति है। हमारा ज्ञान हमको उसकी स्थिति से अवगत कराता है परन्तु उसके बारे में हमारा ज्ञान न होने से उसका अस्तित्व नष्ट नहीं हो जाता। वैसे ज्ञान प्राप्ति के साधन के विषय में यथार्थवादी, प्रयोजनवाद के समान वैज्ञानिक विधि को ही सर्वोत्तम विधि मानता है और निगमन विधि का आश्रय लेता है। प्रयोजनवाद के निम्नलिखित शिक्षण सिद्धांत है 1 सीखने के उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया का सिद्धांत 2 क्रिया या अनुभव द्वारा सीखने का सिद्धांत 3 एकीकरण का सिद्धांत 4 बाल केंद्रित सिद्धांत 5 सामूहिक क्रिया का सिद्धांत
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