Hindi, asked by choubeymanoj83, 5 months ago

शिक्षा का व्यवसायिकरण

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Answered by ganamika481
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शिक्षा का व्यवसायीकरण या बाजारीकरण आज देश के समक्ष बड़ी चुनौती हैं। यह संकट देश में विगत 40-45 वर्षो में उभरकर आया है। परन्तु वास्तव में उसकी नींव अंग्रेज मैकाॅले द्वारा स्थापित शिक्षा में है। इसके पूर्व भारत में शिक्षा कभी व्यवसाय या धंधा नहीं थी।

Explanation:

शिक्षा का व्यवसायीकरण या बाजारीकरण आज देश के समक्ष बड़ी चुनौती हैं। यह संकट देश में विगत 40-45 वर्षो में उभरकर आया है। परन्तु वास्तव में उसकी नींव अंग्रेज मैकाॅले द्वारा स्थापित शिक्षा में है। इसके पूर्व भारत में शिक्षा कभी व्यवसाय या धंधा नहीं थी।

Answered by Anonymous
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Answer:

शिक्षा का व्यवसायीकरण या बाजारीकरण आज देश के समक्ष बड़ी चुनौती हैं। यह संकट देश में विगत 40-45 वर्षो में उभरकर आया है। परन्तु वास्तव में उसकी नींव अंग्रेज मैकाॅले द्वारा स्थापित शिक्षा में है। इसके पूर्व भारत में शिक्षा कभी व्यवसाय या धंधा नहीं थी। हमारे इल्हाबाद के एक मित्र ने कहा कि मेरे एक मित्र का होटल था उन्होंने साथ-साथ विद्यालय शुरू किया। अनुभव यह हुआ था होटल में जितना खर्च किया है उससे कम इनवेस्टमेंन्ट में अधिक कमाई की जा सकती है। उन्होने होटल बंद करके शिक्षा संस्थान खोल दिये।

किसी भी समस्या का समाधान चाहते है तो उसकी जड़ में जाने की आवश्यकता होती है। शिक्षा में वर्तमान का व्यवसायीकरण का कारण क्या है? उसका समाधान क्या हो? कुछ लोग ऐसा भी तर्क देते है कि शिक्षा का विस्तार करना है या सर्वसुलभ कराना है तो मात्र सरकार के द्वारा संभव नहीं है, निजीकरण आवश्यक है और जो व्यक्ति शिक्षा संस्थान में पैसा लगायेगा वह बिना मुनाफे क्यों विद्यालय,महाविद्यालय खोलेगा? कुछ लोग इससे भी आगे बढ़कर कहते है कि देश की शिक्षा का विस्तार एवं विकास करने हेतु विदेशी शैक्षिक संस्थाओं के लिए द्वारा खोलने चाहिए। वैश्वीकरण के युग में इसको रोका नहीं जा सकता आदि प्रकार के विभिन्न तर्क दिये जा रहे है। यह सारे तर्क तथाकथित सभ्रांत वर्ग के द्वारा ही दिये जाते है।

अंग्रेजो के पूर्व की स्थिति:-

देश में कुछ लोगों में ऐसा भी भ्रम है कि भारत में अंग्रेजो के आने के बाद शिक्षा का विस्तार एवं विकास हुआ। ईसा से 700 वर्ष पूर्व तक्षशिला विश्विद्यालय (वर्तमान पाकिस्तान में) उच्च शिक्षा का महान केन्द्र था। इसके अतिरिक्त काषी, नालंदा, विक्रमषिला आदि विश्विद्यालय थे जिसमें विश्व भर से लोग ज्ञान प्राप्त करने आते थे यह प्रचलित एवं वैष्विक स्तर पर सर्व स्वीकार्य तथ्य है। इसी प्रकार लगभग एक हजार वर्ष के संघर्ष के बाद जब अंग्रेजों के भारत में आने के बाद ई.स. 1820 में 33 प्रतिशत साक्षरता (विश्व में सबसे अधिक) भारत में थी। प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक धर्मपाल जी ने अपनी पुस्तक ‘‘दी ब्यूटीफूल ट्री’’ में लिखा है कि पूर्व पादरी श्री विलियम्स एडम नेे किये सर्व के अनुसार बंगाल एवं बिहार में एक लाख से ज्यादा विद्यालय थे। मद्रास प्रेसिडेन्सी में हर गांव में विद्यालय थे। 1835 के पूर्व शिक्षा का दायित्व समाज का था। पूर्व में राजा-महाराजा एवं समाज के सम्पन्न लोग शिक्षा के संचालन में अपना योगदान देते थे लेकिन शिक्षा के प्रत्यक्ष कार्य में उनका कोई हस्तक्षेप नही था। बाद के समय में ग्राम पंचायते भी शिक्षा पर ध्यान देती थंी।

1835 के बाद का स्वरूपः-

अंग्रेजों के शासन में भारत की सारी व्यवस्थाएं धीरे-धीरे समाप्त कर दी गई। इस कारण से देश की आर्थिक स्थिति भी बहुत खराब हो गई। कुछ वर्षो के बाद संस्कृत के पाठषालाओं को अनुदान बंद कर दिया गया और अंग्रेजी विद्यालयों को अधिक-2 अनुदान दिया जाने लगा। छात्रों से शुल्क लेना, शिक्षकों का वेतन एवं विद्यालय चलाने हेतु अनुदान सरकार के द्वारा दिया जाने लगा। एक प्रकार से शिक्षा का सरकारीकरण शुरू हो गया।

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