शिक्षा में क्रीड़ा की आवश्यकता पर अनुच्छेद
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इसी से मिलता-जुलता परिणाम
Explanation:
सिरसा सिरसा का प्राइस केवल पुस्तकों का ज्ञान करना अर्जित नहीं हैअपितु शिक्षा काउपदेश उपदेश मानसिक विकास के साथ-साथउसके शारीरिक विकास की ओर ध्यान देना।
अगरअगर हमारा स्वास्थ्य अच्छा नहीं होगा तो हम शिक्षा भी ठीक तरीके से नहीं कर पाएंगे। हमारा स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। अच्छे अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें व्यायाम और खेलकूद करना चाहिए।
यदि व्यक्ति का शरीर का स्वास्थ्य ठीक नहीं हो तो वह कोई भी कार्य नहीं कर सकता।
Answer:
मानव संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है । कारण यह है कि इसमें चिन्तन की शक्ति है, जिसके द्वारा यह प्राचीनकाल से सब पर शासन करता आया है । आज प्रकृति भी इसके सामने नतमस्तक हो रही है । संसार के सम्पूर्ण ऐश्वर्य के पीछे मानव-मस्तिष्क के विकास का इतिहास गुंथा हुआ है, लेकिन यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि केवल मस्तिष्क का विकास एकांगी है ।
मस्तिष्क के साथ-साथ शारीरिक शक्ति का भी होना अनिवार्य है । अत: मस्तिष्क के विकास के लिए जहां शिक्षा की आवश्यकता है, वहीं शारीरिक-शक्ति को प्राप्त करने के लिए क्रीड़ा की भी आवश्यकता है । दोनों एक-दूसरे के अभाव में अपूर्ण हैं ।
ADVERTISEMENTS:
शारीरिक विकास के लिए खेलों के अतिरिक्त अन्य साधन भी हैं । प्रात: काल में भ्रमण द्वारा भी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है । कुशती, कबड्डी, दंगल भ्रमण, दौड़ना आदि भी स्वास्थ्यवर्द्धन के लिए उपयोगी हैं । इससे शरीर पुष्ट होता है, मनोरंजन आदि से मनुष्य वंचित रहता है । खेलों से मनोरंजन भी पर्याप्त हो जाता है ।
इससे खिलाड़ी में आत्म-निर्भर होने की भावना का उदय होता है । वह केवल अपने लिए ही नहीं खेलता, बल्कि उसकी हार और जीत पूरी टीम की हार और जीत है । अत: उसमें अपने साथियों के लिए स्नेह तथा मित्रता का विकास होता है । उसमें अपनत्व तथा एकत्व की भावना जन्म लेती है । वह अपनें में ही अपनी टोली की प्रगति देखता है ।
रुचि की भिन्नता के कारण किसी को हॉकी, किसी को क्रिकेट और किसी को फुटवॉल अच्छा लगता है । खेलों से अनेक लाभ हैं । इनका जीवन और जाति में विशिष्ट स्थान हैं । शारीरिक और मानसिक स्थिति को कायम रखने के लिए खेलों का बड़ा महत्त्व है । इस लिए प्राचीनकाल से ही खेलों को महत्व दिया गया है ।
विद्यार्थी आश्रमों में अध्ययन के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के खेलों में भी पारंगत होते थे । उस समय के खेल युद्ध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते थे । उस समय धनुर्विद्या की शिक्षा का विशेष बोल-बाला था । खेलों से केवल शरीर ही नहीं, अपितु इससे मस्तिष्क और मन का भी पर्याप्त विकास होता है; क्योंकि पुष्ट और स्वस्थ शरीर में सुन्दर मस्तिष्क का वास होता है ।