शिक्षाप्रद दाहा
कबीर के दोहे
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होई।।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
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यह तण विष कि बेलरी गुरु अमृत कि खान
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