(३) 'शिक्षा से वंचित बालकों की समस्याएँ' इस विषय पर अपना मत लिखिए।
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आज शिक्षा का वर्गीकरण हो गया है. एक वर्ग है जो आर्थिक रूप से सम्पन्न है, वे अपने बच्चों की शिक्षा महंगे स्कूलों में करवा रहे हैं, दूसरा वर्ग जो आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं, स्कूलों की भारी फीसें देने में असमर्थ है, वे बच्चों को शिक्षा से वंचित रख रहे हैं. वे यह नहीं समझते कि शिक्षा व्यक्ति को सामाजिक एवं राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ती है. साक्षरता तथा संस्कारों का आपस में अभिन्न सम्बन्ध है. अक्षर ज्ञान के साथ–साथ ही नैतिक शिक्षा व शिष्टाचार सम्बन्धी बातों को समझने में सुविधा हो जाती है. दैनिक जीवन की आवश्यकताओं को सहजता से पूरा किया जा सकता है. सामाजिक विकास परिवर्तन एवं आधुनिकीकरण में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है. इस तथ्य को सरकार ने भी स्वीकार किया है कि शिक्षा प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार है और इस लिए निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम सन 2009 में पारित किया व लागू हो गया है. इस अधिनियम के पारित होने के साथ निःशुल्क शिक्षा का दायित्व अब सरकार का है. शिक्षा को सर्वसाधारण तक पहुँचाने हेतु सरकार वचन बद्ध है और इस की अनिवार्यता को शैक्षणिक परिदृश्य को सुधारने हेतु भी सरकार की ओर से निरंतर प्रयास हो रहे हैं. इन प्रयासों की मूल भावना यह है समाज के सभी वर्ग के व्यक्ति अपने बच्चों को शिक्षित करवाएं. सर्व शिक्षा अभियान इसी ध्येय को सामने रख कर चलाया जा रहा है. इस अभियान के माध्यम से सुनिश्चित किया जा रहा है कि विशेष वर्ग के बच्चे जिन के माता-पिता, संरक्षक या अभिभावक शिक्षा पर होने वाले खर्च को वहन करने में असमर्थ हैं, उन्हें निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाई जाए और इन अध्ययनरत विद्यार्थियों को पौष्टिक व स्वादिष्ट व्यंजन दोपहर के भोजन में विद्यालय में ही परोसे जाएँ. इस के साथ ही अन्य कई सुविधाएँ दी गई हैं. 6-14 आयु वर्ग के प्रत्येक बच्चे को अनिवार्य प्रवेश, और विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को विद्यालय तक पहुंचने की कठिनाइयों को दूर करने व उनके शैक्षिक स्तर को बनाए रखने के लिए उपयुक्त व्यवस्था का भी प्रावधान है ताकि ऐसे बच्चे अन्य बच्चों के साथ प्रारम्भिक शिक्षा पूरी कर सकें. विद्यालय में एक बार प्रवेश लेने के बाद किसी भी बच्चे को कम शैक्षिक उपलब्धि या अन्य किसी भी आधार पर अगली कक्षा में जाने से रोका नहीं जा सकता है. इस वर्ग विशेष को ध्यान में रखते हुए अनेकों सुविधाएं इस सर्व शिक्षा के अंतर्गत हैं परन्तु परिणाम तो सन्तुष्टिदायक नही मिल रहे हैं.
सर्व शिक्षा अभियान समस्याओं से घिरा हुआ है. सर्व शिक्षा अर्थात सभी को शिक्षा के साथ जोड़ना और समाज के सभी वर्ग स्वयं इस की आवश्यकता को समझे, वे इसे अपने जीवन का अभिन्न अंग मान लें. परन्तु खेद है कि जन साधारण शिक्षा के महत्व को गम्भीरता से नहीं समझ पा रहा. इस लिए अनेक समस्याओं के अंतर्गत विद्यार्थियों की शिक्षा की भी एक भयंकर समस्या राष्ट्र के सामने आ कर खडी हुई है. इस समस्या से त्राण पाने के लिए हमारी सरकार प्रयत्नशील है, किन्तु परिणाम संतोष जनक नहीं निकल पा रहा क्योंकि किसी भी समस्या के निदान के लिए ठीक दिशा में कार्य किया जाए, उस समस्या के कारण के मूल तक जाना ही पड़ता है. प्रश्न उपस्थित हो जाता है कि आखिर इस समस्या के मूल तक जाएँ कैसे ? इस का उत्तर वे माता-पिता, जिनका अपनी सन्तान के लिए उत्तरदायित्व होता है, वे कहते हैं कि न तो हमारे पास समय है और न ही निदान को जानते हैं क्योंकि माता-पिता अशिक्षित हैं. वे बच्चों की पढ़ाई में सहायता नही कर सकते. बच्चों की व उन के माता-पिता की पृष्ठभूमि पर दृष्टिपात करें कि क्या वे अपनी भागीदारी को समझ सकने का सामर्थ्य रखते हैं. इन में से अधिकतर तो झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं. दैनिक जीवन की आधारभूत सुविधायों के अभाव की पूर्ति करने में ही असमर्थ है, भला इस दिशा में अपने बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में क्या भागीदारी निभायेगें?
प्रारभिंक शिक्षा के सार्वजनीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने में बच्चों के अभिभावकों की भूमिका अत्यंत ही महत्तवपूर्ण है क्योंकि चाहे कितनी भी अच्छी योजना क्यों न बन जाए जब तक अभिभावक की भागीदारी नही होगी, तब तक योजना अपने लक्ष्यों को प्राप्त नही कर सकती है ,इस लिए सर्व शिक्षा बहुत ही जटिल समस्या है. विशेषज्ञों और शिक्षाविदों को इस समस्या की गहराई तक चिन्तन करना है. इस में उन का विवेकी व दूरदर्शी होना अत्यंत ही आवश्यक है. वे केवल यह न सोचें कि इस वर्ग विशेष को सुविधाएं देने से समस्या सुलझ जायगी. सुविधाएं भी आवश्यक हैं परन्तु बच्चों को स्कूल भेजना उस से भी अधिक आवश्यक है. इस के लिए माता-पिता को शिक्षा के प्रति जागरूक करने की व शिक्षा से होने वाले लाभों से अवगत कराना भी अनिवार्य है. मनुष्य की यह स्वाभाविक प्रवृति होती है कि जिस में लाभ देखता है उसे अवश्य ग्रहण करता है.
निःशुल्क एवं अनिवार्य बालशिक्षा, शिक्षा अधिकार विधेयक में पारित करने का एक मुख्य उद्देश्य यह भी था कि जो बच्चे बाल मजदूरी करते हैं और आर्थिक अभाव के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, स्कूलों में निःशुल्क शिक्षा जब दी जायेगी तो बाल मजदूरी समस्या का भी समाधान हो जाएगा, लेकिन जिन माता-पिता व अभिभावकों को सुविधाएं दी जा रही हैं वे स्वयं पूर्णतः अशिक्षित होने के कारण शिक्षा के महत्त्व को समझते नहीं कि बच्चों के सम्पूर्ण विकास के लिए शिक्षा कितनी महत्त्वपूर्ण है. माता-पिता के जागरूक रहने पर ही कोई पद्धति व नियम ठीक ढंग से लागू की जा सकती है