शिक्षा
सबसे प्रथम कर्त्तव्य है शिक्षा बढ़ाना देश में,
शिक्षा बिना ही पड़ रहे हैं, आज हम सब क्लेश में
शिक्षा बिना कोई कभी बनता नहीं सत्पात्र है।
शिक्षा बिना कल्याण की आशा दुराशा मात्र है॥1॥
जब तक अविद्या का अँधेरा हम मिटावेंगे नहीं,
जब तक समुज्ज्वल ज्ञान का आलोक पावेंगे नहीं।
तब तक भटकना व्यर्थ है, सुख-सिद्धि के सन्धान में,
पाये बिना पथ पहुँच सकता कौन इष्टस्थान में ॥ 2 ॥
ये देश जो है आज उन्नत और सब संसार से,
चौंका रहे हैं नित्य सबको नव नवाविष्कार से।
बस ज्ञान के संचार से ही बढ़ सके हैं वे वहाँ,
विज्ञान बल से ही गगन में चढ़ सके हैं वे वहाँ॥ 3 ॥
विद्या मधुर सहकार करती सर्वथा कटु-निम्ब को,
विद्या ग्रहण करती कलों से शब्द को, प्रतिबिम्ब को।
विद्या जड़ों में भी सहज ही डालती चैतन्य है,
हीरा बनाती कोयले को, धन्य विद्या धन्य है॥4॥
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शिक्षा सबसे प्रथम कर्त्तव्य है शिक्षा बढ़ाना देश में,
शिक्षा बिना ही पड़ रहे हैं, आज हम सब क्लेश में
शिक्षा बिना कोई कभी बनता नहीं सत्पात्र है।
शिक्षा बिना कल्याण की आशा दुराशा मात्र है॥1॥
व्याख्या : देश में शिक्षा का प्रसार-प्रचार करना सबसे पहला कर्तव्य और कार्य होना चाहिए, क्योंकि शिक्षा के अभाव में लोग आपस में लड़ रहे हैं, एक-दूसरे से झगड़ रहे हैं। शिक्षा के बिना लोग लोगों में विवेक नहीं आता और वह सभ्यता और संस्कार नहीं सीख पाते। इसलिए शिक्षा के बिना लोगों का कल्याण हो, ऐसी इच्छा रखना ऐसा बेमानी है।
जब तक अविद्या का अँधेरा हम मिटावेंगे नहीं,
जब तक समुज्ज्वल ज्ञान का आलोक पावेंगे नहीं।
तब तक भटकना व्यर्थ है, सुख-सिद्धि के सन्धान में,
पाये बिना पथ पहुँच सकता कौन इष्टस्थान में ॥ 2 ॥
व्याख्या : जब तक शिक्षा का अंधकार में मिटेगा जब तक ज्ञान की ज्योति नहीं जलेगी। तब तक किसी का कुछ भला नहीं होगा। तब तक इधर-उधर के सुख साधनों की खोज में भटकने का कोई अर्थ नहीं है। शिक्षा के बिना किसी भी तरह का सुख-साधन व्यर्थ है। शिक्षा दी अपने इष्ट यानि लक्ष्य़ तक पहुंचने का सही मार्ग है।
ये देश जो है आज उन्नत और सब संसार से,
चौंका रहे हैं नित्य सबको नव नवाविष्कार से।
बस ज्ञान के संचार से ही बढ़ सके हैं वे वहाँ,
विज्ञान बल से ही गगन में चढ़ सके हैं वे वहाँ॥ 3 ॥
व्याख्या : इस संसार में जितने भी विकसित देश में सब शिक्षा के कारण ही विकसित हैं। वह अपने नए नए आविष्कारों से पूरे विश्व को आश्चर्यचकित कर रहे हैं। वह अपने शिक्षा अभियान के कारण ही आगे बढ़ सके हैं। ज्ञान और विज्ञान के कारण ही ऊंचाइयों के शिखर को छुपा रहे हैं।
विद्या मधुर सहकार करती सर्वथा कटु-निम्ब को,
विद्या ग्रहण करती कलों से शब्द को, प्रतिबिम्ब को।
विद्या जड़ों में भी सहज ही डालती चैतन्य है,
हीरा बनाती कोयले को, धन्य विद्या धन्य है॥4॥
व्याख्या : विद्या यानी शिक्षा लोगों में विनम्रता पैदा करती है, जिससे लोगों के बीच की कटुता मिटती है। लोग एक दूसरे के प्रति भेदभाव भुलाकर भुलाकर प्रेम से रहते हैं। विद्या के कारण लोगों ने संस्कार उत्पन्न होते हैं। विद्या लोगों में चेतना भरती अर्थात वह जड़ मन को चैतन्य मन बना देती है। वह कोयले को हीरा बना देती है, अर्थात विद्या के कारण अयोग्य मनुष्य भी योग्य बन जाता है। इसलिए विद्या यानि शिक्षा धन्य है।
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