शिक्षा, शिक्षक और छात्र तीनों का परस्पर संबंध एक-दूसरे के अस्तित्व के लिए शरीर में में उतना ही आवश्यक है, जितना शरीर विभिन्न अंगों का । किसी भी एक अंग विकृति आने से संपूर्ण शैक्षणिक व्यवस्था संकट ग्रस्त हो जाती है । प्रायः कई कारणो से वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर विद्वानों द्वारा प्रश्न उठाए जाते रहे हैं। पूर्व में भारत विद्या और शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र था, जो कि गुरुकुल पध्दति पर आधारित था । जहाँ गुरु और शिष्य परंपरा स्वार्थ और लालच से ऊपर थी । वर्तमान में देखे तो शिक्षा और गुरु का संबंध ग्राहक और विक्रेता की तरह बन गया है । इसका परिणाम यह हो रहा है कि शिक्षा की गुणवत्ता दूषित होने लगी है । जहाँ एक ओर शैक्षणिक केंद्रों में मोल-भाव होता है और डिग्री बाँटने वाली दुकानें हर गली-मोहल्ले में खुल गई हैं, वही दूसरी ओर परीक्षा में सफल कराने के वादों के साथ नित नए-नए कोचिंग सेंटर भी इस खेल में अपनी दुकान लगातार बढ़ा रहे है । इनका परिणाम न केवल शिक्षा के स्तर को बिगाड़ने के रूप में दिख रहा है, बल्कि यह शिक्षक और छात्र के संबंधों को भी दूषित कर रहे हैं । एक शिक्षा केंद्र में पहली आवश्यकता शिक्षक की योग्यता होती है। जब कि वर्तमान के शिक्षा बाजार में यह मुददा भी चर्चा का विषय है । वैश्विक स्तर पर शिक्षा का महत्व प्राचीन समय से विद्यमान है। प्राचीन समय में शिक्षा के वाहक गुरु होते थे, जिनका सम्मान और आदर आम जन से लेकर राजा-महाराजा तक करते थे । प्रश्न : १) शिक्षा, शिक्षक और छात्र के मध्य संबंध की तुलना किससे की गई है ? क्यों? २) शिक्षा का स्तर बिगाड़ने के लिए कौन-कौन जिम्मेदार है ? ३) वर्तमान समय में क्या देखने को मिलता है ? ४) प्राचीन समय में शिक्षा के वाहक कौन थे? ५) शिक्षा केंद्र में पहली आवश्यकता क्या होती है ? ६) प्रस्तुत गद्याशं को उचित शीर्षक दीजिए ?
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1- सरिर से
2- कोचिंग शेंटर,डोकान
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