शिक्षा देता कोरोना पर रचनात्मक लेखन
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नई दिल्ली: कोरोना वायरस (Coronavirus) से संक्रमितो की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. विश्व का शायद ही कोई देश हो जो इस महामारी के प्रकोप से बचा हो. तमाम अनुमानों के बावजूद इससे लड़ने में सभी देशों की अक्षमता लगातार सामने आ रही है. शुरू में लापरवाही दिखाने वाले देश आज इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.
अमेरिका, इंग्लैंड आदि जिन देशों ने प्रारंभ में इसे लेकर गंभीरता नहीं दिखाई वह अब इस संकट से सबसे ज्यादा जूझ रहे हैं. कोरोना से बचने का जो सबसे बड़ा उपाय सामने आया है, वह है इससे बचाव के तरीकों का सख्ती से पालन. इसमें भीड़ से दूरी, मास्क का उपयोग, हाथ की लगातार सफाई आदि शामिल है. बचाव के तरीकों पर शुरू में कुछ असहमति थी मगर हाल के अनुभवों से लोग इसमें सहमत होते दिख रहे हैं.
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दुनिया के बड़े से बड़े शहर आज सुनसान हैं, बाहर के उन्माद से दूर लोग आज अपने घरों में कैद हैं. यह सब एक वायरस के कारण हुआ जिसके बारे में माना जाता है कि वह चमगादड़ से मनुष्य के संपर्क में आया. यूरोप के ज्यादातर देश इस बीमारी के सामने घुटने टेक चुके हैं. जो कार्य प्रथम विश्व और द्वितीय विश्वयुद्ध में नहीं हुआ वह भी इस महामारी ने किया है. क्योंकि इस महामारी ने राजनीतिक और वैचारिक बंधनों से परे जाकर सभी देशों, समुदायों को समान रूप से हानि पहुंचाई है. जिसके कारण इस महामारी के प्रति भय व्याप्त होने लगा है.
चीन से शुरू हुई यह महामारी अब इटली, स्पेन और ईरान में हजारों लोगों की जान ले चुकी है. दुनिया के सबसे ताकतवर और आर्थिक संपन्न देश पास भी इस संकट से बचने का कोई उपाय नजर नहीं आ रहा है. दुनिया के तमाम देश जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में दूसरे देशों पर हद से ज्यादा निर्भर थे वह आज अपने को असहाय पा रहे हैं, ज्यादातर देशों में या तो आपात काल जैसे नियम लागू कर दिए गए हैं या लागू करने की तैयारी हो रही है. भारत उन प्रारम्भिक देशों में से है, जिन्होंने शुरूआती दौर में कठोर कदम उठा लिए थे, जिसके कारण कोरोना का प्रभाव भारत पर अभी कम दिखाई दे रहा है.
आज जो सबसे बड़ा प्रश्न हमारे सामने है, वह यह है कि क्या मानव सभ्यता इस तरह के आगामी संकटों के लिए तैयार है. कुछ समय पहले जब हम मानव सभ्यता पर संभावित खतरों की बात करते थे तो हमारे सामने जलवायु परिवर्तन और आणविक हथियारों का संकट सामने दिखाई पड़ता था.
प्रत्येक देश इन्हीं संभावित खतरों से अपने को सचेत करने का प्रयास करता था, मगर कोरोना वायरस के बाद मनुष्य की प्राथमिकताएं बदल गई हैं. दुनिया के अधिकतर देशों के पास मिसाइल से बचने के तकनीक तो है, मगर कोरोना जैसे वायरस से बचने का विकल्प नहीं है. दुनिया के तमाम विकसित देश अपने को इसके सामने असहाय पा रहे हैं.
हमारे समाज ने अपना ज्यादातर ध्यान और ऊर्जा सुविधाओं को बेहतर और उनके निर्गत करने के तरीकों पर लगाने की बजाय उनके उत्पादन पर लगाई. इसलिए आज ज्यादातर समाज अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अन्य समाजों पर निर्भर है.
यह समय हमें बताता है कि एक समुदाय के रूप में हमें अपने को कुछ विषयों में आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता है, हम अपनी प्रत्येक आवश्यकता के लिए दूसरे पर निर्भर नहीं रह सकते हैं. इस बीमारी के कारण जो परिवार अपने यहां सफाई और भोजन व्यवस्था के लिए दूसरों पर निर्भर थे वो इसको लेकर ज्यादा परेशान हो रहे हैं.