शिक्षा विभाग में शिक्षकों के पद रिक्त है अपनी योग्यताओं का विवरण देते हुए आवेदन पत्र लिखिए
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Answer:
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Explanation:
सेवा में,
जिला शिक्षा अधिकारी,
जोधपुर, (राज)।
दिनांक 5 जुलाई, 20XX
विषय- प्राथमिक शिक्षक के पद के लिए आवेदन-पत्र।
मान्यवर,
रोजगार समाचार दिनांक 16/4/ 2017 के माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि आपके अधीन प्राथमिक शिक्षकों के कुछ स्थान रिक्त हैं तथा उनके लिए आवेदन-पत्र आमन्त्रित किए गए है। मैं भी इसी पद के लिए अपना आवेदन-पत्र आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रही हूँ। मेरी शैक्षणिक योग्यताएँ अनुभव तथा अन्य विवरण निम्नलिखित है।
मैंने जोधपुर विश्वविद्यालय में स्नातक की उपाधि द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की है।
मैंने राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से 1997 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा भी द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की है।
मैंने राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से ही वर्ष 1995 में हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है।
मैंने राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण केन्द्र जोधपुर (राज) से बेसिक टीचर कोर्स वर्ष 2002 में सफलतापूर्वक पूरा किया है। (STC) इस परीक्षा में भी अच्छे अंक प्राप्त किए।
मैं जुलाई 2008 से डी.ए.वी. हायर सैकेण्डरी स्कूल, जोधपुर में प्राथमिक शिक्षिका के पद पर कार्यरत हूँ।
मैंने अपने विद्यार्थी जीवन में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर कई पुरस्कार प्राप्त किए। मैं 36 वर्षीय स्वस्थ महिला हूँ।
आशा है कि आप मुझे सेवा का एक अवसर अवश्य प्रदान करेंगे। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि मैं चयन किये जाने के पश्चात अपने कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा के साथ पालन करूँगी तथा अपने कार्य एवं व्यवहार से अधिकारियों को सदा संतुष्ट रखने का प्रयास करूँगी। आवेदन पत्र के साथ प्रमाण-पत्रों के प्रतिरूप संलग्न है।
धन्यवाद
प्रार्थी
अनीता कुमारी
16. निम्नलिखित गद्यांश का शीर्षक लिखकर एक तिहाई शब्दों में सार लिखिए :
ऐसा कोई दिन आ सकता है, जबकि मनुष्य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जाएगा। प्राणिशास्त्रियों का ऐसा अनुमान है कि मनुष्य का यह अनावश्यक अंग उसी प्रकार झड़ जाएगा, जिस प्रकार उसकी पूँछ झड़ गई है। उस दिन मनुष्य की पशुता भी लुप्त हो जाएगी। शायद उस दिन वह मारणास्त्रों का प्रयोग भी बंद कर देगा। तब इस बात से छोटे बच्चों को परिचित करा देना वांछनीय जान पड़ता है कि नाख़ून का बढ़ना मनुष्य के भीतर की पशुता की निशानी है और उसे नहीं बढ़ने देना मनुष्य की अपनी इच्छा है, अपना आदर्श है। बृहत्तर जीवन में अस्त्र-शस्त्रों को बढ़ने देना मनुष्य की पशुता की निशानी है और उनकी बाढ़ को रोकना मनुष्यत्व का तकाजा। मनुष्य में जो घृणा है, जो अनायास-बिना सिखाए- आ जाती है, वह पशुत्व का द्योतक है और अपने को संयत रखना दूसरों के मनोभावों का आदर करना मनुष्य का स्वधर्म है। बच्चे यह जाने तो अच्छा हो कि अभ्यास और तप से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य की महिमा को सूचित करती है।