शिक्षक ने छात्रों को आयोडीन का घोल प्रदान किया और उन्हें विभिन्न पदार्थों में स्टार्च की उपस्थिति की जाँच करने के लिए कहा। सीमा ने कटे हुए आलू पर आयोडीन के घोल की कुछ बूंदें डालीं और देखा कि उसका रंग नीला काला हो गया है। फिर उसने चीनी के क्यूब्स पर आयोडीन के घोल की कुछ बूंदें डालीं और देखा कि इसका रंग नहीं बदला है। इससे क्या निष्कर्ष निकाला जा सकता है?
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Answer:
प्रयोगशाला प
ु
स्तिका के िवषय में
अच्छी विज्ञान शिक्षा बच्चे के जीवन और विज्ञान के प्रति ईमानदार होती है ।
— राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा – 2005
विज्ञान सीखने के दो आवश्यक घटक होने चाहिए – ज्ञान के ढाँचे की समझ और उन प्रक्रमों की समझ
जिनके द्वारा ज्ञान का निर्माण, स्थापन और सं
चरण होता है । हमारे देश में विद्यालयी विज्ञान की वर्तमान
स्थिति नाममात्र को इनमें से किसी एक घटक को सं
तष्
ुट करती है और अन्य का अधिकतर ध्यान नहीं
दे पाती । अन्य शब्दों में, हमारा तं
त्र विज्ञान की सं
कल्पनाओ की उत ं ्पत्ति एवंसं
चयन करने वाले प्रक्रम
पर ज़ोर देने के बजाय, परिणाम प्राप्त करने के लिए विज्ञान के तथ्यों को रटने से भरा हुआ है ।
अनसुं
धान ने दर्शाया है कि छोटे बच्चेमर्तूर्तऔर एक तरफा विचारक नहीं होते हैं, वे आश्चर्यजनक
रूप से परिष्कृत एवं विविध विचारक क्षमताएँ दर्शाते हैं । उनके पास प्राकृत विश्व का पर्याप्त ज्ञान
होता है । अत: कुछ शिक्षाविदों के मध्य यह भावना, कि बच्चों के मस्तिष्क खाली घड़ेहोते हैं जिन्हें
शिक्षक के अनदेशों के म ु ाध्यम से ज्ञानोदय की प्रतीक्षा रहती है, पर्णूर्णरूप से असमर्थनीय तर्कहै । जब
बच्चेउच्च प्राथमिक स्तर पर पहुँच जाते हैं तो वे वर्षों की सं
ज्ञानात्मक वृद् धि के साथ होते हैं और अपने
आस-पास की दनिया
ु के बारे में बोध और तर्क के विभिन्न तरीकों की सहज योग्यता विकसित किए
हो सकते हैं । इन वास्तविकताओ की रोशनी में, विज्ञान ं शिक्षण अधिगम का पिछले कुछ दशकों में
दरगू ामी रूपां
तरण भी हो गया है । इसने शिक्षक-केंद्रित से बाल-केंद्रित, मात्र जानकारी के उबाऊ सप्रेषं प्रेषण
से ज्ञान का सृजन, कक्षा-कक्षों में निष्क्रिय व्याख्याओ से ं जोशपर्णू, र्ण अन्योन्यक्रियात्मक, क्रियाकलाप
आधारित अधिगम रटकर याद करने से रचनात्मक प्रयोग करना और आनभविक अ ु धिगम जैसे
आमल-च ू ल बदल ू ाव देखे हैं ।