शिक्षक दिवस के कार्यक्रम को लेकर विद्यार्थियों के बीच बातचीत |
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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने एक उत्तम सेवा इस देश की, की। वह अपना जन्मदिन नहीं मनाते थे। वह शिक्षक का जन्म दिन मनाने का आग्रह करते थे। ये शिक्षक दिवस की कल्पना ऐसे पैदा हुई है , खैर अब तो दुनिया के कई देशों में इस परंपरा को जन्म मिला है। दुनिया में किसी भी बड़े व्यक्ति से पूछिए, उनके जीवन में सफलता के बारे में वह दो बातें अवश्य बताएगा। एक कहेगा, मेरी मां कहा योगदान है। दूसरा, मेरे शिक्षक का योगदान है। करीब-करीब सभी महापुरूषों के जीवन में ये बात हमें सुनने को मिलती है, लेकिन यही बात हम जहां है, वहां हम सजगतापूर्वक उसको जीने का प्रयास करते हैं क्या?
एक जमाना था शिक्षक के प्रति ऐसा भाव था, यानि, छोटा सा गांव हो तो पूरे गांव में सबसे आदरणीय कोई व्यक्ति हुआ करता था, तो शिक्षक हुआ करता था। नहीं मास्टर जी ने बता दिया है, मास्टर जी ने कह दिया है, ऐसा एक भाव था। धीरे-धीरे स्थिति काफी बदल गई है। उस स्थिति को पुन: प्रतिस्थापित कर सकते हैं।
एक बालक के नाते आपके मन में काफी सवाल होगें। आप में से कई बालक होंगे जिनको छुट्टी के दिन परेशानी होती होगी कि सोमवार कैसे आये और संडे को क्या-क्या किया जाकर के टीचर को बता दूं। जो अपनी मां को नहीं बता सकता, अपने भाई-बहन को नहीं बता सकता वो बात अपने टीचर को बताने के लिए इतना लालायित रहता हैं, इतना आपनापन हो जाता है, उसको और वही उसके जीवन को बदलता है, फिर उसका शब्द उसके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लाता है।
मैंने कई ऐसे विद्यार्थी देखें हैं जो बाल भी ऐसे बतायेंगे जैसे उसका टीचर बनाता है, कपड़े भी ऐसे पहनेंगे जैसे उसका टीचर पहनता है, वो उनका हीरो होता है। ये जो अवस्था है, उस अवस्था को जितना हम प्राणवान बनाये, उतनी हमारी नयी पीढ़ी तैयार होगी।
चीन में एक कहावत है जो लोग साल का सोचते हैं, वो अनाज बोते हैं, जो दस साल का सोचते हैं, वो फलों के वृक्ष बोते हैं, लेकिन जो पीढि़यों को सोचते हैं वो इंसान बोते हैं। मतलब उसको शिक्षित करना, संस्कारित करना उसके जीवन को तैयार करना। हमारी शिक्षा प्रणाली को जीवन निर्माण के साथ कैसे हम जीवन्त बनायें