Political Science, asked by ganeshpop48, 10 months ago

शॉक थेरेपी से आप क्या समझते हैं​

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Answered by Anonymous
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हमेशा ही डर और संदेह की नजर से देखा जाता रहा है लेकिन धीरे-धीरे इसे मरीजों की सहमति मिल रही है। इलेक्ट्रिक शॉप थेरेपी को मेडिकल की भाषा में इलेक्ट्रोकनवज्लिव थेरेपी (ECT) के नाम से जाना जाता है। डॉक्टरों के मुताबिक इस प्रक्रिया में मरीज को शॉक से पहले शांत करने वाली और एनेस्थेटिक दवाएं गी जाती हैं। इससे उनमें डर, दर्द और हिंसक होने की आशंका कम हो जाती है। स्क्रित्सोफ्रीनिया रिसर्च फाउंडेशन की डायरेक्टर डॉ. आर. तारा के मुताबिक,'पहले मरीजों को बिना बेहोश किए ही इलेक्ट्रिक शॉक दिए जाते थे। जिसकी वजह से उन्हें बहुत दर्द होता था और चोट भी आती थी। हालांकि यह असरदार है लेकिन मरीजों में इसे लेकर डर व्याप्त रहता था।'

नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसायेंसेज (NIMHANS)के डायरेक्टर डॉ. बीएन गंगाधर भी ईसीटी के पक्षधर डॉक्टरों में से एक हैं। डॉ. गंगाधर का मानना है कि ईसीटी को लेकर लोगों के मन में डर की प्रमुख वजह है हमारी फिल्मों में इसका डरावना चित्रण। इसकी वजह से न सिर्फ लोग थेरेपी से डरते हैं बल्कि सायकाइट्रिस्ट भी इसकी सलाह देने से बचते हैं। हालांकि अभी भी ईसीटी को लेकर डॉक्टरों की अलग-अलग राय है। कई डॉक्टरों का मानना है कि शॉक थेरेपी के दौरान मरीज की याद्दाश्त चले जाने का खतरा होता है। सायकाइट्रिस्ट्स अभी डिप्रेशन के इलाज के लिए शॉक थेरेपी के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं। हालांकि वे ये मानते हैं कि ईसीटी का असर बहुत जल्द होता है और कई बार मरीज डिप्रेशन लेवल में बदलाव की बात कहते हैं।इसके अलावा भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर भी एक बड़ी समस्या है। एक हालिया सर्वे से पता चला है कि 52% हॉस्पिटलों में अभी भी बिनी एनेस्थीज्या के इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है। सिर्फ आठ अस्पतालों के पास इसके लिए आधुनिक सुविधा उपलब्ध है। ट्रेन्ड एनेस्थेज्यॉलजसिस्ट्स की सीमित संख्या भी एक बड़ी चुनौती है। डॉक्टरों का मानना है कि भारत में ईसीटी को लेकर जो कमियां हैं वे उनके पीछे सामाजिक वजहों का बड़ा हाथ है। सायकाइट्रिस्ट डॉ. सुरेश राव कहते हैं,'अगर यह पिछले 80 साल से चला आ रहा है क्योंकि इसके असरकार नतीजे भी सामने आते रहे हैं। लोगों में गलत जानकारी और भ्रम नहीं फैलाया जाना चाहिए। इसकी वजह से पीड़ितों को उचित इलाज नहीं मिल पाता है।'

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