शंकर में कांगड़ा नहीं हमारा योग किस प्रकार विकसित हुआ
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योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है। यह शब्द - प्रक्रिया और धारणा - हिन्दू धर्म,जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बन्धित है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्री लंका में भी फैल गया है और इस समय सारे सभ्य जगत् में लोग इससे परिचित हैं।
प्रसिद्धि के बाद पहली बार ११ दिसम्बर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष २१ जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दी है। परिभाषा ऐसी होनी चाहिए जो अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोषों से मुक्त हो, योग शब्द के वाच्यार्थ का ऐसा लक्षण बतला सके जो प्रत्येक प्रसंग के लिये उपयुक्त हो और योग के सिवाय किसी अन्य वस्तु के लिये उपयुक्त न हो। भगवद्गीता प्रतिष्ठित ग्रंथ माना जाता है। उसमें योग शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है, कभी अकेले और कभी सविशेषण, जैसे बुद्धियोग, सन्यासयोग, कर्मयोग। वेदोत्तर काल में भक्तियोग और हठयोग नाम भी प्रचलित हो गए हैं। पतंजलि योगदर्शन में क्रियायोग शब्द देखने में आता है। पाशुपत योग और माहेश्वर योग जैसे शब्दों के भी प्रसंग मिलते है। इन सब स्थलों में योग शब्द के जो अर्थ हैं वह एक दूसरे से भिन्न हैं ।
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सिर्फ आसन, प्राणायाम, ध्यान ही योग नहीं है: श्री श्री रविशंकर
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सिर्फ आसन, प्राणायाम, ध्यान ही योग नहीं है: श्री श्री रविशंकर
श्री श्री रविशंकर का चिंतन है सिर्फ आसन, प्राणायाम, ध्यान ही नहीं, बल्कि किसी कार्य को कुशलतापूर्वक करना या तनावरहित जीवन जीना, ये भी योग हैं।
सबसे बड़ी देन है योग
यदि आप एक बच्चे को गौर से देखें, तो उसकी समस्त शारीरिक क्रियाएं अलग-अलग योग मुद्राओं के समान लगेंगी। उसका सोना, मुस्कराना आदि जैसे कार्य भी योग के समान प्रतीत होते हैं। इसलिए बच्चे हमेशा तनावमुक्त तथा खुश रहते हैं। वे एक दिन में 400 बार तक मुस्करा लेते हैं। हम स्वीकार करें या न करें, लेकिन हम सभी जन्मजात योगी हैं। बच्चों के सांस लेने का तरीका वयस्क लोगों से बिल्कुल अलग होता है। यह सांस ही है, जो शरीर और भावनाओं के मध्य सेतु का कार्य करती है। योग से हमें अनगिनत लाभ मिलते हैं। पहला तो यही है कि हम स्वस्थ होते हैं। योग हमें तनाव और कुंठामुक्त जीवन की ओर बढ़ाता है। योग मानवता को दी गई सबसे बड़ी देन है।