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खेत-खलिहान की मजदूरी इस विषय में अपने विचार लिखें
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भूमिहीनता है और उसके चलते व्यापक गरीबी है। अशिक्षा, बेरोजगारी तथा ऋणग्रस्तता भी है।
इसीलिए कृषि क्षेत्र में मजदूरी करना उसकी विवशता है। कम मजदूरी के कारण उसकी पारिवारिक आय अत्यन्त अल्प होती है। जिससे वह अपना व परिवार का भरण पोषण नहीं कर सकता है। खेत मजदूरों की सामाजिक बनावट को देखें। इनका एक बड़ा हिस्सा दलित, आदिवासी, अति पिछड़ी जाति से है। सामाजिक रूप से अति पिछड़े दलित होने के कारण अपनी मजदूरी तय करने में असमर्थ है। खेती के समय बहुत सारे गाँवों में मजदूरी की दर प्रतिदिन 20 रूपये से 40 रूपये तक होती है। इस कारण उचित मजदूरी या न्यूनतम मजदूरी की बात ही नहीं हो पाती है। इसका मुख्य कारण आर्थिक व सामाजिक भी है।
खेत मजदूरों में संगठन का अभाव है। इसलिए जो भी कानून व योजनाएँ बनती हैं वे कागजों पर ही रह जाती हैं। खेत मजदूरों से सम्बंधित योजनाओं का क्रियान्वयन नौकरशाहों के हाथों में है। नौकरशाही भ्रष्ट है और नौकर शाही के अपने वर्गीय निहित स्वार्थ हैं। वर्गीय स्वार्थ के कारण खेत मजदूरों के कल्याण में उनकी रूचि नहीं होती है।