शैली के प्रकारो को विस्तार से समझाइए
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शैली
शैली हिन्दी शब्दकोश का एक शब्द है, जो अंग्रेज़ी के 'स्टाइल' का अनुवाद है और अंग्रेज़ी साहित्य के प्रभाव से हिन्दी में आया है। प्राचीन साहित्यशास्त्र में शैली से मिलते-जुलते अर्थ को देने वाला एक शब्द प्रयुक्त हुआ है- 'रीति'। 'काव्यालंकारसूत्र' के लेखक आचार्य वामन ने रीति को 'विशिष्टपद रचना' कहकर पारिभाषित किया है। इस परिभाषा में 'विशिष्ट' शब्द का अर्थ है, गुण-युक्त।
रीतियों के रूप
आचार्य वामन 'रीति' को 'काव्य की आत्मा' मानते हैं। इनके अनुसार रीतियों के तीन रूप हैं-
वैदर्भी
गौड़ीय
पांचाली
वैदर्भी रीति में, वामन के अनुसार, ओज, प्रसाद आदि समस्त गुण रहते हैं। गौड़ी रीति के प्रधान गुण ओज और कान्ति है और पांचाली के मधुरता और सुकुमारती। वामन के मत में वैदर्भी रीति ही सर्वथा ग्राह्य है। दूसरे आचार्यों ने उक्त रीतियों के दूसरे प्रकार के वर्णन दिये हैं। कुछ आचार्यों ने यह भी निर्देश करने की कोशिश की है कि किस प्रकार के वर्णों आदि के प्रयोग से विशेष रीति अस्तित्व में आती है। रीतियों के ये व्याख्यान यह संकेत देते हैं, मानो रीतित्त्व का प्रमुख आधार विशिष्ट पदयोजना हो। यहाँ एक बात और लक्षित करने की है-वामन आदि के मत में रीति अच्छे लेखन का ही धर्म है। इसका मतलब यह हुआ कि घटिया रचना में रीति की उपस्थिति नहीं होती।
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साहित्यिक शैली
ये उप-शैलियों साहित्य के तीन प्राथमिक रूपों से उपजी हैं: कविता , नाटक और गद्य । छात्र आमतौर पर स्कूल में पढ़ने और लिखने वाले अधिकांश लोगों के लिए साहित्य के इन रूपों का सामना करेंगे, इसलिए छात्रों को उन्हें पहचानने और उनकी प्रमुख विशेषताओं को जानने में सक्षम होना महत्वपूर्ण है।
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