शालिनी-भ्रातः! त्वम् किम् ज्ञातुमिच्छसि? तस्याः कुक्षि पुत्रः अस्ति पुत्री वा? किमर्थम्? षण्मासानन्तरं सर्वं स्पष्ट भविष्यति, समयात् पूर्वी किमर्थम् अयम् आयासः?
राकेशः-भगिनि, त्वं तु जानासि एव अस्माकं गृहे अम्बिका पुत्रीरूपेण अस्त्येव अधुना एकस्य पुत्रस्य आवश्यकताऽस्ति तर्हि……।
शालिनी-तर्हि कुक्षि पुत्री अस्ति चेत् हन्तव्या? (तीव्रस्वरेण) हत्यायाः पापं कर्तुं प्रवृत्तोऽसि त्वम्।।
राकेशः-न, हत्या तु न………….
शालिनी-तर्हि किमस्ति निघृणं कृत्यमिदम्? सर्वथा विस्मृतवान् अस्माकं जनकः कदापि पुत्रीपुत्रमयः विभेदं न कृतवान्? सः सर्वदेव मनुस्मृतेः पंक्तिमिमाम् उद्धरति स्म "आत्मा वै जायते पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा"। त्वमपि सायं प्रातः देवीस्तुतिं करोषि? किमर्थं सृष्टेः उत्पादिन्याः शक्त्याः तिरस्कारं करोषि? तव मनसि इयती कुत्सिता वृत्तिः आगता, इदम् चिन्तयित्वैव अहम् कुण्ठिताऽस्मि। तव शिक्षा वृथा…..
शब्दार्थ : ज्ञातुम्-जानना (जानने के लिए)। इच्छसि-चाहते हो। तस्याः -उसके। कुक्षि-गर्भ में। किमर्थम्-क्यों (किसलिए)। षण्मासानन्तरम्-छह मास के बाद। आयासः-प्रयास। भगिनि-हे बहन। अस्त्येव (अस्ति+एव)-है ही। तर्हि-तो। चेत्-यदि। उत्पादिन्याः-उत्पन्न करने वाली। शक्त्याः -शक्ति का। तिरस्कारम्-अपमान। इयती-इतनी। हन्तव्या-मारने योग्य। तीव्रस्वरेण-तेज आवाज़ से। प्रवृत्तोऽसि-लग गए हो। निघृणम्-घृणा के योग्य। कृत्यम्-काम। सर्वथा-पूरी तरह से। विस्मृतवान्-भूल गए। पुत्रीपुत्रमयः-बेटी-बेटा रूप। विभेदम्-भेद। कृतवान्–किया था। जायते-पैदा होता है। दुहिता-बेटी। समा-समान होती है। सृष्टेः-संसार की। कुत्सिता-बुरी। प्रवृत्तिः-विचार। कुष्ठिता-चिन्तित। वृथा-बेकार में।
सरलार्थ : शालिनी-भाई! तुम क्या जानना चाहते हो? उसके पेट में पुत्र है अथवा पुत्री? किसलिए? छह महीने के बाद सब स्पष्ट तो जाएगा, समय से पहले किसलिए यह कोशिश (हो रही है)?
राकेश-बहन, तुम तो जानती हो ही हमारे घर में अम्बिका पुत्री के रूप में है ही। अब एक पुत्र की जरूरत है तो……..
शालिनी-तो गर्भ में बेटी है यदि तो मार देनी चाहिए? (तेज़ आवाज़ से) हत्या का पाप करने में तुम लग गए। राकेश-नहीं, हत्या तो नहीं…….।
शालिनी-तो यह घृणा के योग्य कार्य क्या है? बिलकुल भूल गए हमारे पिता ने कभी पुत्र और पुत्री में यह भेद नहीं किया था? वे सदैव मनुस्मृति की इस पंक्ति का उदाहरण देते थे-"निश्चय से पिता की आत्मा ही पुत्र के रूप में जन्म लेती है और पुत्र के समान ही पुत्री होती है।" तुम भी सायं-प्रात: देवी की स्तुति करते हो? क्यों सृष्टि की उत्पादक शक्ति का अपमान करते हो? तुम्हारे मन में इतनी गलत प्रवृत्ति आ गई, यह सोचकर ही मैं चिन्तित हूँ। तुम्हारी पढ़ाई बेकार…..
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ही भाषा मला येत नाही जास्त
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