Hindi, asked by dua56, 11 months ago

शैलेश और रूपक अलंकार के चार भेद​

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Answered by Anonymous
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(1)श्लेष अलंकार :- जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही हो परंतु उसके अर्थ भिन्न-भिन्न भिन्न हो तो शैलेश अलंकार होता है । शैलेश शब्द का अर्थ है - चिपकना, अर्थात जहां किसी शब्द के साथ दो अर्थ चिपके हो, वहां स्लेश अलंकार ही होता है ।

जैसे :- सुवरण को ढूंढ फिरत कवि , व्यभिचारी, चोर ।

इस पंकित में सुवरण के तीन अर्थ है

1) कवि के लिए अच्छा अक्षर

2) व्यभिचारी के लिए गोरा रंग तथा

3)चोर के लिए स्वर्ण

कुछ अन्य उदाहरण - रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ।

पानी गए न ऊबरै ,मोती मानुष चून ।

इस दोहे की दूसरी पंकित में पानी के तीन अर्थ है :- 1) मोती के लिए चमक

2) मनुष्य के लिए सम्मान और

3)चुन (आटा) के लिए जल

दूसरा उदाहरण - मंगल को देखी देता बार-बार है।

पट के दो अर्थ है वस्त्र एवं कीबाढ़।

(2). रूपक अलंकार:- जहां काव्य में संसार की प्रसिद्ध वस्तुओं से गुना की समानता को दर्शाने के लिए किसी सामान्य वस्तु पर उसकी समानता दर्शाने के बदले सीधा आरोपण कर दिया जाता है । वहां रूपक अलंकार होता है ।

जैसे - मैया मैं तो चंद्र - खिलौना , लैहौं ।

इस पंकित में खिलौने की तुलना चंद्रमा से करने की वजह चंद्रमा को ही खिलौना कह दिया गया है।

कुछ अन्य उदाहरण:-

1)चरण कमल बंदों हरिराइ ।

2)पायोजी मैंने राम रतन धन पायो ।

3)अपलक नव नील नयन विशाल।


rohitkumargupta: Grt answers sir
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