Hindi, asked by Varuni89, 5 months ago

शैलेंद्र कुमार परिचय अपने शब्दों में लिखिए ​

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Answered by shambhavi1634
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दो दशक से अधिक समय तक लगभग 170 फिल्मों में जिंदगी के हर फलसफे और जीवन के हर रंग पर गीत लिखने वाले शैलेन्द्र के गीतों में हर मनुष्य स्वयं को ऐसे समाहित-सा महसूस करता है जैसे वह गीत उसी के लिए लिखा गया हो।

दो दशक से अधिक समय तक लगभग 170 फिल्मों में जिंदगी के हर फलसफे और जीवन के हर रंग पर गीत लिखने वाले शैलेन्द्र के गीतों में हर मनुष्य स्वयं को ऐसे समाहित-सा महसूस करता है जैसे वह गीत उसी के लिए लिखा गया हो।अपने गीतों की रचना की प्रेरणा शैलेन्द्र को मुंबई के जुहू बीच पर सुबह की सैर के दौरान मिलती थी। चाहे जीवन की कोई साधारण-सी बात क्यों न हो वह अपने गीतों के जरिए जीवन के सभी पहलुओं को उजागर करते थे।

दो दशक से अधिक समय तक लगभग 170 फिल्मों में जिंदगी के हर फलसफे और जीवन के हर रंग पर गीत लिखने वाले शैलेन्द्र के गीतों में हर मनुष्य स्वयं को ऐसे समाहित-सा महसूस करता है जैसे वह गीत उसी के लिए लिखा गया हो।अपने गीतों की रचना की प्रेरणा शैलेन्द्र को मुंबई के जुहू बीच पर सुबह की सैर के दौरान मिलती थी। चाहे जीवन की कोई साधारण-सी बात क्यों न हो वह अपने गीतों के जरिए जीवन के सभी पहलुओं को उजागर करते थे।पश्चिमी पंजाब के रावलपिंडी शहर (अब पाकिस्तान) में 30 अगस्त 1923 को जन्मे शंकरदास केसरीलाल उर्फ शैलेन्द्र अपने भाइयों में सबसे बड़े थे। उनके बचपन में ही उनका परिवार रावलपिंडी छोडकर मथुरा चला आया, जहां उनकी माता पार्वतीदेवी की मौत से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा और उनका ईश्वर पर से सदा के लिए विश्वास उठ गया।

दो दशक से अधिक समय तक लगभग 170 फिल्मों में जिंदगी के हर फलसफे और जीवन के हर रंग पर गीत लिखने वाले शैलेन्द्र के गीतों में हर मनुष्य स्वयं को ऐसे समाहित-सा महसूस करता है जैसे वह गीत उसी के लिए लिखा गया हो।अपने गीतों की रचना की प्रेरणा शैलेन्द्र को मुंबई के जुहू बीच पर सुबह की सैर के दौरान मिलती थी। चाहे जीवन की कोई साधारण-सी बात क्यों न हो वह अपने गीतों के जरिए जीवन के सभी पहलुओं को उजागर करते थे।पश्चिमी पंजाब के रावलपिंडी शहर (अब पाकिस्तान) में 30 अगस्त 1923 को जन्मे शंकरदास केसरीलाल उर्फ शैलेन्द्र अपने भाइयों में सबसे बड़े थे। उनके बचपन में ही उनका परिवार रावलपिंडी छोडकर मथुरा चला आया, जहां उनकी माता पार्वतीदेवी की मौत से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा और उनका ईश्वर पर से सदा के लिए विश्वास उठ गया।अपने परिवार की घिसी-पिटी परंपरा को निभाते हुए शैलेन्द्र ने वर्ष 1947 में अपने करियर की शुरुआत मुंबई मे रेलवे की नौकरी से की। उनका मानना था कि सरकारी नौकरी करने से उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा।

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