शाम का समय ..... दिल्ली की सड़को पर भीड़ ...... कार में बैठते हुए एक ऑफिसर का बटुआ गिरना ...... बटुआ
क निर्धन छात्र को मिलना.......पैसो को लेकर छात्र के मन में तरह-तरह के विचार उठना दूसरे दिन स्कूल
जाकर शिक्षिका को बताना ....... उसके बाद समाचारपत्रों में इस खबर को छपाना .... समाचारपत्र पढ़कर
ऑफिसर का स्कूल आना....... बालक की सच्चाई व ईमानदारी पर खुश होना ....... बच्चे की आगे की पढ़ाई का
सारा खर्च ऑफ़िसर द्वारा उठाना ....... शिक्षा पूर्ण होने के बाद अपने विभाग में नौकरी दिलाना .... सीख ।
महिला....एक डाक्टर से आँखों का इलाज करवाना तीक होने पर नती write a story please plz plz
Answers
प्रश्न में दिये गये संकेत वाक्यों के आधार पर निम्न कहानी प्रस्तुत है।
ईमानदारी का फल (कहानी)
शाम का समय था, दिल्ली की सड़कों पर भारी भीड़ थी। दिल्ली सचिवालय में उच्च पद पर कार्यरत एक ऑफिसर आशीष सचदेव अपने दफ्तर से घर जाने के लिए निकले। वे कार से अपने घर की ओर जा रहे थे। रास्ते में उन्हें कुछ सामान लेना था, तो उन्होंने एक जनरल स्टोर के आगे अपनी कार को रोका की और कार से नीचे उतर कर दुकान में चले गए।
दुकान से उन ऑफिसर ने अपनी जरूरत का सामान खरीदा और दुकानदार को पैसे अदा किए। फिर दोनों हाथों में सामान का पैकेट पकड़े वह कार में बैठने लगे। दुकान में हड़बड़ी में बह बटुआ जेब में ठीक से नही रख पाये थे, जो आधा जेब से बाहर था, कार में बैठते समय उनका बटुआ जेब से नीचे गिर पड़ा, उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला। वे अपनी कार का दरवाजा बंद करके कार चलाकर आगे निकल गए। उनका बटुआ सड़क पर ही पड़ा रह गया।
पीछे से एक स्कूली छात्र अपने स्कूल से वापस घर की ओर जा रहा था। वो पास के ही सरकारी स्कूल में पढ़ाई करता था। उसकी छुट्टी शाम छः बजे होती थी। उसकी नजर उस बटुये पर पड़ गई। उसने तुरंत बटुआ उठा लिया और आगे बढ़ गया। आगे एक पार्क था, उसने पार्क में बैठकर बटुये को खोलकर देखा तो उसमें बहुत सारे पैसे थे। साथ ही उन ऑफिसर का विजिटिंग कार्ड, एटीएम कार्ड, क्रेडिट कार्ड आदि जैसे अन्य महत्वपूर्ण कार्ड थे। उसने चुपचाप वह बटुआ अपने स्कूल के बैग में रख लिया।
उस छात्र ने घर पर आकर भी किसी को कुछ नहीं बताया। पैसे को लेकर उसके मन में तरह-तरह के विचार उठ रहे थे। उसने रात में बहुत सोच विचार कर निर्णय लिया।
अगले दिन वो अपने स्कूल गया और अपनी शिक्षिका को बटुआ दिखाकर सारी बात बताई। उसने बताया कि उसे यह बटुआ रास्ते में पड़ा मिला था। इसके अंदर बहुत सारे पैसे हैं और किसी अधिकारी का के कई जरूरी कार्ड आदि हैं। शिक्षिका यह बात सुनकर और उस छात्र की ईमानदारी देखकर बड़ी प्रसन्न हुई। उसने लड़के को शाबाशी दी और विजिटिंग कार्ड के विवरण के आधार पर समाचार पत्र में यह खबर छपवा दी कि अमुक बटुआ, अमुक जगह पर अमुक व्यक्ति के नाम का पड़ा मिला है।
समाचार पत्र पढ़कर वह ऑफिसर आशीष सचदेव अगले दिन स्कूल आए और स्कूल के प्रिंसिपल से उन्हें सारी बात पता चली। उन्हें उनका बटुआ मिल गया था। बालक की सच्चाई व ईमानदारी से वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि ऐसे बच्चे ही तो हमारे देश का सुनहरा भविष्य हैं। उन्हें यह भी मालूम पड़ा कि वो बालक बड़े निर्धन परिवार से संबंध रखता है। उन्होंने उस बालक की आगे की पूरी पढ़ाई का खर्चा स्वयं उठाने का निश्चय किया साथ ही वादा किया कि उसकी पढ़ाई पूरी होने पर उसको सरकारी विभाग में नौकरी भी दिलवायेंगे। वो छात्र भी उनकी उस अनुकंपा से उस ऑफिसर के आगे नतमस्तक हो गया। सब लोगों ने उस बालक की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
सीख — हमें इस कहानी से सीख मिलती है, कि हमें सदैव ईमानदारी का पालन करना चाहिये, पराये धन को देखकर लालची नहो होना चाहिये। यदि किसी की कोई वस्तु हमें कहीं मिली है, उस व्यक्ति को ढूंढ कर उसी अमानत लौटा देनी चाहिये। ईमानदारी का फल हमेशा मीठा ही होता है।