श्न 1. निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
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“कवि सौंदर्य से प्रभावित रहता है और दूसरों को भी प्रभावित करना चाहता है। किसी रहस्यमयी
प्रेरणा से उसकी कल्पना में कई प्रकार के सौंदर्य का जो मेल आप से आप हो जाया करता है उसे
पाठक के सामने भी वह प्रायः रख देता है जिस पर कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा मेल क्या
संसार में बराबर देखा जाता है। मंगल-शक्ति के अधिष्ठान राम और कृष्ण जैसे पराकमशाली और
धीर है वैसा ही उनका रूप-माधुर्य और उनका शील भी लोकोत्तर है। लोक हृदय आकृति और गुण,
सौंदर्य और सुशीलता एक ही अधिष्ठान में देखना चाहता है |
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“कवि सौंदर्य से प्रभावित रहता है और दूसरों को भी प्रभावित करना चाहता है। किसी रहस्यमयी प्रेरणा से उसकी कल्पना में कई प्रकार के सौंदर्य का जो मेल आप से आप हो जाया करता है उसे पाठक के सामने भी वह प्रायः रख देता है जिस पर कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा मेल क्या संसार में बराबर देखा जाता है। मंगल-शक्ति के अधिष्ठान राम और कृष्ण जैसे पराकमशाली और धीर है वैसा ही उनका रूप-माधुर्य और उनका शील भी लोकोत्तर है। लोक हृदय आकृति और गुण, सौंदर्य और सुशीलता एक ही अधिष्ठान में देखना चाहता है |”
संदर्भ ► ये गद्यांश आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था’ से लिया गया है। इस निबंध के माध्यम से लेखक ने काव्य के माध्यम से आम जन के हित का विवेचन किया है।
व्याख्या ► इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक के कहने का तात्पर्य है कि कवि के मन की भावनाएं कोमल होती हैं। वह अपने आसपास के सौंदर्य से प्रभावित रहता है और वह अपनी इन भावनाओं को अपने काव्य के माध्यम से प्रकट करता है। जिस सौंदर्य को उसने अपने आसपास देखा है, महसूस किया है, वह अपनी कविताओं के माध्यम से सौंदर्य बोध को दूसरों को भी बताना चाहता है, उन्हें प्रभावित करना चाहता है। उसकी किसी अनजानी अनुभूति से उसके अंदर जो प्रेरणा उत्पन्न होती है और वह अपनी कल्पना शक्ति के माध्यम से जिस तरह के सौंदर्य का वर्णन करता है. कविताओं में प्रकट करता है, हो सकता है, कुछ लोगों के अनुसार वह आम जीवन में परिलक्षित नहीं होता हो। कवि राम और कृष्ण के जैसे पराक्रमी और वीर रूप का वर्णन करता है, वैसा ही उनका रूप आम जीवन में भी उतना ही लोकप्रिय है। यानि आम जन उनके वैसे ही रूप को देखना चाहता है, जैसे मनोहारी रूप का ही वर्णन कवि लोग करते हैं।
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