Hindi, asked by jayprakashgoyal9686, 20 days ago

श्न-21 निम्नलिखित गद्यांश की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए- क) पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मी पर अखंड विश्वास था। वह कहा करते थे कि संसार का तो कहना वर्ग में भी लक्ष्मी का ही राज्य है। उनका यह कहना यथार्थ ही था। न्याय और नीति सबलक्ष्मी लौने हैं इन्हें वह जैसे चाहती है, नचाती है। लेटे ही लेटे गर्व से बोले चलो, हमआते हैं। यह डेत जीने बड़ी निश्चिंतता से पान के बीड़े लगाकर खाय फिर लिहाफ ओढ़ेहुए दरोगा के पास ने-बाबूजी, आशीर्वाद

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Answered by shishir303
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दिए गए गद्यांश की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या इस प्रकार होगी...

संदर्भ ⦂ मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित ‘नमक का दरोगा’ कहानी से लिया गया है। यह प्रसंग उस समय का है, जब पंडित अलोपीदीन की अवैध नमक से भरी गाड़ियों को दरोगा मुंशी वंशीधर ने पकड़ लिया था और पंडित अलोपदीन दरोगा मुंशी वंशीधर से बातचीत कर रहे थे।

व्याख्या ⦂ लेखक का कहना है कि पंडित अलोपदीन को अपनी धन-संपत्ति पर बेहद अभिमान और विश्वास था। उनका मानना था कि संसार में हर कार्य धन के बल पर कराया जा सकता है। जिसके पास धन है उसका ही संसार में राज्य है। उनके अनुसार वह अपने धन की ताकत पर न्याय को भी अपने पक्ष में करवा सकते हैं। उनके धन की ताकत के आगे न्याय और कानून सब छोटे हैं। वह जब चाहे न्याय को अपने पक्ष में करवा सकते हैं। बड़े बड़े अधिकारी भी उनके धन की शक्ति के आगे अपना सर झुकाते हैं।

जब उन्हें अपने आदमियों से अपनी गाड़ियों के पकड़े जाने की सूचना मिली तो वह लेटे-लेटे ही आराम से बोले कि तुम चलो हम आते हैं। उन्हें इस बात का अभिमान था कि दरोगा ने उनकी गाड़ियां पकड़ी तो हैं, लेकिन वह उसे रिश्वत देकर अपनी गाड़ियों को छुड़वा लेंगे। इसीलिए वे दरोगा के पास आकर बेहद मीठे स्वर में उसे लालच देने का प्रयत्न करने लगे और उस पर रिश्वत देकर अपना प्रभाव जताने की कोशिश करने लगे।  

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