श्न 7. 'प्रकृति यहाँ एकान्त बैठि, निज रूप सँवारति,
पल-पल पलटति, छलक छन छन छवि धारति,
मानों जादू भरी, विश्व बाजीगर थैली,
खेलत में खुल परी, शैल के सिर फैली।
उपर्युक्त पंक्तियाँ किस पाठ में आई है?
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दठलखलडलबल डॉ नूतन गैरोला है कि इस
aakashthakurkumar272:
anwer do bhai
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