ेश प्रेम, प्रेम का वह अंश है जिसका आलंबन है सारा देश- उसमें व्याप्त प्रत्येक कण अर्ाात मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, तालाब,
वन, पवात इत्यादद। यह एक साहचयागत प्रेम है अर्ाात जिस के साननध्य का हमें अभ्यास पड़ िाता है उनके प्रनत लोभ या राग हो
िाता है। कोई भी व्यजतत सच्चा देश प्रेमी कहला सकने का सामर्थया तभी रखेगा िब वह देश के प्रत्येक मनुष्य, पशु ,पक्षी ,तालाब,
लता ,पेड़ ,पत्ते ,वन ,पवात ,ननर्ार आदद सभी को अपनत्व की भावना से देखेगा। इन सब की सुधि करके ववदेश में भी आंसूबहाएगा।
िो व्यजतत राष्र के मूलभूत िीवन को भी नहीं िानता और उसके बाद भी देश प्रेमी होने का दावा करें तो यह उसकी भूल है। िब तमु
ककसी के सुख-दखु के भागीदार ही नहीं बने तो उसे सुखी देखने के स्वप्न की तुम कैसे कल्पना करोगे? उससे अलग रह कर अपनी
बोली में तुम उसके दहत की बात करो तो उसमें प्रेम के मािुया िैसे भाव ही नहीं होंगे। प्रेम को तरािूमें तोला ही नहीं िा सकता।
यह भाव तो मनुष्य के अंतः करण से िुड़े हुए हैं। पररचय से प्रेम की उत्पजत्त होती है। यदद आप समर्ते हैं कक आप के अंतः करण
में राष्रप्रेम के भाव उिागर हो तो आप राष्र के स्वरूप से पररधचत हो िाइए और अपने को उसके स्वरूप में समा िाने दीजिए। तभी
आप के अंतरतम में इस इच्छा का सचमुच उदय होगा कक वह हमसे कभी ना छूटे। उसके िन-िान्य की ववृि हो और सभी सुखी हों।
प्रश्न (क) देश प्रेम का आलंबन है-
(१) सारा देश
(२) देश के मनुष्य
(३) पशुपक्षी
(४) वन पवात
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Explanation:
कोई भी व्यजतत सच्चा देश-प्रेमी कब कहला सकता है ?
( िब वह देश की प्रत्येक वस्तुके सार् अपनत्व का भाव रखेगा , िब वह पहाड़ों को
अपना समर्ेगा , िब वह पशु-पक्षी से प्यार करेगा , िब वह मनुष्य को प्यार करेगा)
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